कविता
रिश्ते
रिश्तों का रंग आज बदला है,
जीने का ढंग आज बदला है।
पहचान में कोई नहीं आता।
अपनों को समझ नहीं पाता।
सारा चाल-चलन बदला है।
रिश्ते हाथ से फिसलते है,
साथ चलते औ बिछड़ते हैं।
आज जीने का ढंग बदला है।
पैसों का भी खेल है सारा ।
आज उससे है जगत हारा।
लोगों ने अपना रंग बदला है।
माता पिता और गुरु सखा,
ढ़ूंढ़ने से भी नहीं ये दिखा।
रिश्तों का चलन बदला है।
रोज कश्तियां बदलते हैं।
रास्ता बदल के चलते हैं।
आस्थाओं ने रंग बदला है।
मानवता छिपी जाने कहां।
ढ़ूंढ़ते उसको हैं सारे जहां।।
जीने का ढंग आज बदला है।।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली