सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है
घना उजाला दिखता बाहर , भीतर तो तन्हाई है ।
अंतस् में कई प्रश्न गूंजते , क्या ये पीर पराई है
रूखे- सूखे रिश्ते ढोना,ये भी तो इक सच्चाई है
सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।
तन पूरा ,मन रहा अधूरा, कितनी ये गहराई है
हार जीत की रीत झूठी ,ये सच्ची बात सिखाई है
सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।
मरुभूमि में मृगतृष्णा की कथा भी तो दिखलाई है
सिमटी दुनिया ,बिखरा जीवन फिर भी क्या बुराई है
सदियों तक पीड़ा सहकर हमने ये दौलत पाई है ।
अंजु मल्होत्रा