यशपाल सिंह “यश”
जहां अमृत भी संभावित था वहां गरल चुन लिया उन्होंने
जीवन में संघर्ष बढ़ा तो, काम सरल चुन लिया उन्होंने
सूख रहे तरुवर जीवन के, पर हरियाली संभावित थी
मगर शुष्क उपवन की खातिर, दावानल चुन लिया उन्होंने
जीवन के हर दोराहे पर, ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’
जब अपनी बारी आई तो, मार्ग विफल चुन लिया उन्होंने
अगर ढूंढ़ते, कमी नहीं थी, ऐसे प्रेरक प्रसंगों की
आत्मघात जो चुन सकते थे, पर संबल चुन लिया जिन्होंने
जागृत जीवन सरिता थी, और था मदिरा का आमंत्रण भी
सम्मोहन तज मधुशाला का, गंगाजल चुन लिया जिन्होंने
अवसादित जीवन के पल में, मन के प्रश्नों की हलचल में
कहा कृष्ण ने जो अर्जुन से, वैसा हल चुन लिया जिन्होंने
मार्ग दूरगामी है सच का, मगर असत का आकर्षण है
धन्य समझ ‘यश’ छोड़ प्रलोभन, सत्य अटल चुन लिया जिन्होंने