.डॉक्टर सुधीर सिंह [शेखपुरा , बिहार]
आजादी का 75वीं वर्षगाँठ हिंद माननेवाला है,
किंतु तू-तू, मैं-मैं से संसद कभी न आजाद रहा।
बहस के लिएआवंटित संसद का बहुमूल्य वक्त,
राजनीति के दांवपेंच में बेवजह ही फंसा रहा।
हिंदुस्तान के अवाम की मेहनत की कमाई को,
लोग गुलछर्रा उड़ाने में ज्यादा मनमानी न करें।
कोई न कभी माफ करेगा वैसे सुविधाभोगी को,
वक्त के निष्ठुर न्याय-दंड से महानुभाव डरा करें।
समय सबका एक सा रहता नहीं है कभी यहाँ,
वक्त की चोट एकदिन सबको सहना पड़ता है।
महापंडित लंकापति रावण हो या हो क्रूर कंस,
मनमानी करनेवालों को दंड भुगतना पड़ता है।
जनता के मेहनताना से मिला हुआ वेतन-भत्ता,
बिना कुछ किये ही सम्मानित लोग ले लेते हैं।
संभव हो तो शांतभाव से स्वयं से सवाल करें,
कर्मयोगी जनता को गफलत में क्यों रखते हैं?
कभी तो जनहित का जलवा दिखाएं जननेता,
समर्पित मतदाता के दुख-दर्द को जरा समझें।
जिस मकसद से उन्हें जनप्रतिनिधि चुना गया,
उसे अमलीजामा पहनाने का सदा प्रयास करें।