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मनहरण घनाक्षरी

जल का जो मीठा कूप ,अपने ही पास है तो

दूजे के ही कूप से जी ,जल मत पीजिए !

देकर राजभाषा का,दर्जा जो हिंदी को बस

नाम मात्र का सम्मान , आप मत कीजिए!

जननी  हमारी है ये,कई भाषाओं की प्यारी

गर्व से इसे जो आप , हाथों-हाथ लीजिए!

छोड़िए जी आप अब ,मतभेद मनभेद

राष्ट्रभाषा का ही अब, ताज इसे दीजिए!

     नीरजा’नीरू’

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