(01 अगस्त, 1882 से 01 जुलाई, 1962)
प्रारंभिक जीवन :-
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 01 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं के सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई। सन् 1894 में उन्होंने इसी स्कूल से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनका विवाह मुरादाबाद निवासी चन्द्रमुखी देवी के साथ करा दिया गया। सन् 1899 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और उसी साल इण्टरमीडिएट की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। सन् 1900 में उनकी पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया। लगभग इस दौरान वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में दाखिला लिया परन्तु अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें सन् 1901 में कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया।
सन् 1903 में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इन सब कठिन परिस्थितियों के मध्य उन्होंने सन् 1904 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने इतिहास विषय में स्नातकोत्तर किया और फिर कानून की पढ़ाई करने के बाद सन् 1906 में वकालत प्रारंभ कर दिया। इसके पश्चात वे उस समय के प्रसिद्ध अधिवक्ता तेज बहादुर सप्रू की देख-रेख में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। स्वाधीनता आन्दोलन और सामाजिक गतिविधियों के लिए उन्होंने सन् 1921 में अपनी वकालत छोड़ दी।
स्वतंत्रता सेनानी :-
पुरूषोत्तम दास टंडन एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी, राजनयिक, हिन्दी भाषा के सेवक, पत्रकार, वक्ता और समाज सुधारक थे। अपने निजी जीवन में सादगी अपनाने के कारण उन्हें राजर्षि उपनाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। हिन्दी को देश की राजभाषा का स्थान दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने सन् 1910 में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’, वाराणसी, में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना की। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान वे कई बार जेल भी गए। वे 13 साल तक यूनाइटेड प्रोविंस विधान सभा का अध्यक्ष भी रहे। स्वाधीनता आन्दोलन के साथ-साथ वे कृषक आंदोलनों से भी जुड़े थे। आजादी के बाद वे लोक सभा व राज्य सभा के लिए चुने गए।
राजनीतिक जीवन :-
सन् 1905 में उनके राजनीतिक जीवन का प्रारंभ हुआ जब बंगाल विभाजन के विरोध में समूचे देश में आन्दोलन हो रहा था। बंगभंग आन्दोलन के दौरान उन्होंने स्वदेशी अपनाने का प्रण किया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार प्रारंभ किया। अपने विद्यार्थी जीवन में ही सन् 1899 में वे कांग्रेस पार्टी का सदस्य बन गए थे। सन् 1906 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में इलाहाबाद का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस पार्टी ने जलियाँवालाबाग कांड के जांच के लिए जो समिति बनाया था उसमे पुरुषोत्तम दास टंडन भी शामिल थे। वे ‘लोक सेवक संघ’ का भी हिस्सा रहे थे। 1920 और 1930 के दशक में उन्होंने असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह में भाग लिया और जेल गए। सन् 1931 में गाँधी जी के लन्दन गोलमेज सम्मलेन से वापस आने से पहले गिरफ्तार किये गए नेताओं में जवाहरलाल नेहरु के साथ-साथ वे भी थे। पुरुषोत्तम दास टंडन कृषक आंदोलनों से भी जुड़े रहे और सन् 1934 में बिहार प्रादेशिक किसान सभा का अध्यक्ष भी रहे। वे लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित ‘लोक सेवा मंडल’ के अध्यक्ष भी रहे।
वे यूनाइटेड प्रोविंस (आधुनिक उत्तर प्रदेश) की विधान सभा के 13 साल (1937-1950) तक अध्यक्ष रहे। उन्हें सन् 1946 में भारत के संविधान सभा में भी सम्मिलित किया गया। आजादी के बाद सन् 1948 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पट्टाभि सितारमैय्या के विरुद्ध चुनाव लड़ा पर हार गए। सन् 1950 में उन्होंने आचार्य जे. बी. कृपलानी को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष पद हासिल किया पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के साथ वैचारिक मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। सन् 1952 में वे लोक सभा और सन् 1956 में राज्य सभा के लिए चुने गए। इसके बाद ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने सक्रिय सार्वजानिक जीवन से संन्यास ले लिया। सन् 1961 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
देश के विभाजन पर उनका मत एवं हिंदी के समर्थक :-
12 जून, 1947 को कांग्रेस कार्य समिति ने देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया। जब 14 जून इस प्रस्ताव को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के समक्ष मंजूरी के लिए रखा गया तब इसका विरोध करने वालों में से एक पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उनका कहना था कि विभाजन स्वीकार करने का मतलब था अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के सामने झुकना। उन्होंने कहा विभाजन से किसी का भी भला नहीं होगा – पाकिस्तान में हिन्दू और यहाँ भारत में मुसलमान डर के वातावरण में जीवन व्यतीत करेंगे।
हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का बड़ा योगदान था। ‘हिंदी प्रचार सभाओं’ के माध्यम से उन्होंने हिंदी को अग्र स्थान दिलाया। गाँधी और दूसरे नेता ‘हिन्दुस्तानी’ (उर्दू और हिंदी का मिश्रण) को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे पर उन्होंने देवनागरी लिपि के प्रयोग पर बल दिया और हिंदी में उर्दू लिपि और अरबी-पारसी शब्दों के प्रयोग का भी विरोध किया।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम :-
1882 : 01 अगस्त को जन्म हुआ
1899 : कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने
1906 : वकालत प्रारम्भ किया
1908 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बार में शामिल हुए
1908 : जाने-माने अधिवक्ता तेज बहादुर सप्रू के साथ एक कनिष्ठ अधिवक्ता के तौर पर कार्य प्रारंभ किया
1919 : जलिआंवाला बाग़ हत्याकांड के जांच के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा गठित समिति का सदस्य बनाये गए
1921 : स्वाधीनता आन्दोलन के खातिर अपना वकालत का पेशा त्याग दिया
1934 : बिहार प्रदेश किसान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित हुए
1937 : 31 जुलाई को उत्तर प्रदेश विधान सभा का अध्यक्ष चुने गए
1946 : संविधान सभा के लिए चुने गए
1947 : 14 जून को विभाजन के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया
1948 : कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में पट्टाभि सितारमैय्या से हार गए
1950 : आचार्य जे बी कृपलानी को हराकर कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बने
1952 : लोक सभा का सदस्य बने
1956 : राज्य सभा का सदस्य बने
1961 : भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया
1962 : 01 जुलाई को निधन हुआ