रेशमा एक बहुत ही सीधी-सादी लड़की थी । जहां उसके साथ की लड़कियां फ़ैशन ,टीवी और मोबाइल में लगी रहती थी वहीं वह उम्र से पहले ही बड़ी हो चुकी थी। रेशमा का पिता शराबी था वह दर्जी का काम किया करता था परन्तु सारी की सारी कमाई अय्याशी और शराब पर लुटा दिया करता था। शराब अच्छे से अच्छे घरों को बर्बाद कर देती है निम्नमध्य वर्ग या निम्न वर्ग की बात ही क्या है। रेशमा की मां फैक्ट्री में धागा काटने का काम करती थी और उन्हीं रुपयों से चार बच्चों समेत परिवार का खर्च चल रहा था।
रेशमा आंखे चमकती हुई सी थी,उसका शरीर दुबला-पतला था लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी गम्भीरता थी । उसे देखकर लगता कि कितना बड़प्पन है इसके मासूम से चेहरे पर। परीक्षा में एक विषय में कम्पार्टमेंट आ गया था। मैडम ने उस विषय में ट्यूशन पढ़ने की सलाह दी थी । इसके बाद कुछ दिन वह विद्यालय नहीं आयी। फिर एक दिन आकर सीधे टीसी के लिए प्रार्थना पत्र सामने रख दिया।
“मैम मैं अब नहीं पढ़ूंगी , मम्मी के पास पैसे
नहीं हैं वे मुझे अब नहीं पढ़ायेंगी।”कहते-कहते
उसकी सूखी-सी आंखों से आंसू की दो बूंदें
ढुलक गयीं।
मम्मी कहां हैं? निशि मैम ने प्रार्थनापत्र हाथ में लिए लिए पूछा।
मम्मी तो कम्पनी में काम करती हैं, वहीं गयीं हैं।
“और पापा ,पापा कहां हैं?”
” मैम पापा नहीं आयेंगे ।”
“क्यों,क्यों नहीं आयेंगे ?”
“मैम बस ऐसे ही ।वे शराब पीकर इधर उधर
घूमते रहते हैं।”
“कुछ काम नहीं करते हैं क्या ?
“करते हैं,सिलाई का काम करते हैं पर केवल
अपने शराब भर के लिए। मम्मी से भी लड़कर
पैसे छीन लेते हैं ।”
“क्योंं देती है मम्मी पैसे ,न दे।”
“मैडम फिर वह मारपीट करता है। मम्मी के
शरीर पर इधर-उधर नीले निशान पड़ गये हैं। हम लोग बचाने जाते हैं तो वह हम लोगों को भी मारता है।” रेशमा की आंखों से आंसू बह रहे थे और ओंठ कांप रहे थे।
मैडम की आंखें भर आईं आखिर इस पुरुष प्रधान समाज में औरतों को कितना अत्याचार
सहन करना पड़ता है।
“अच्छा तो मम्मी कितने बजे फैक्ट्री जाती है?”
“आठ बजे सुबह।”
ठीक है तुम उन्हें साढ़े सात बजे ही ले आना
पर लाना जरूर। बहुत जरूरी बात करनी है।
रेशमा का रोजमर्रा का काम था स्कूल में पढ़ाई करना ,घर जाकर घर का सारा काम निपटाना ,रात का खाना पकाना तब जाकर उसे दो रोटी नसीब होती थी। एक ही कमरा होने के कारण वह चादर के अन्दर टेबललैम्प जलाकर पढ़ाई करती थी।
दूसरे दिन सुबह साढ़े सात बजे रेशमा की मां बेटी के साथ मैडम के सामने थी।
नमस्ते मैम आपने बुलाया है। मैम यह एक
विषय में फेल हो गई है और मेरे पास ट्यूशन
लगाने के लिए पैसे नहीं हैं।घर की स्थिति थोड़ा
खराब चल रही है।
“बस इतनी सी बात है न।”
“जी मैम ,क्या करूं मजबूरी है। “
“ठीक है तुम मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं रहती
हो। इसको मैं ट्यूशन पढ़ाऊंगी बिल्कुल मुफ्त
कुछ नहीं देना है ।अब बताओ ?”
“मैम आप बहुत महान हैं, मैं आपका उपकार
कभी नहीं भूलूंगी।”
“कोई बात नहीं ,बस इसे घर पर भी थोड़ा
पढ़ने का मौका देना।”
“जरूर मैम रात का खाना यहीं बनाती है अब मैं बना लिया करूंगी।”
घर में और कौन-कौन हैं ?
मैम चार बच्चे हैं।बड़े बेटे की शादी कर दी है उसके एक बच्चा भी है पर वह अपने ससुराल में ही रहता है।
” अरे यह तो बहुत गलत हुआ।”
“हां मैम पहले तो लव मैरिज कर ली और अब बीबी के साथ ससुराल में पड़ा रहता है।उसके ससुराल वाले और बीबी दोनों ही बहुत
ख़राब हैं।” थोड़ा रुक कर फिर बोली,
“उसके एक बेटी यही रेशमा है दूसरी भी यहीं पढ़ती है सबसे छोटा बेटा है चौथी में पढ़ता है।इनका खर्चा मेरे ही ऊपर है। इनका बाप पांच पैसा भी नहीं देता उल्टा मारपीट करके मुझसे ही मांगता हैं।”रेशमा की मां रोते हुए बोली।
सब समय का खेल है,क्या करोगी ? सब ठीक हो जाएगा। रेशमा को कल से पढ़ने के लिए भेज देना।”
दो माह बाद जब कम्पार्टमेंट का रिजल्ट घोषित हुआ तो रेशमा पास हो गई थी। वह
मैम के पास जाकर खड़ी हो गई।
“मैम आपके कारण ही यह सब हुआ है । नहीं तो मैं तो घर में बैठी होती।” उनकी आंखों में
एहसान झलक रहा था।
“ठीक है ,ठीक है,अब आगे इतना मेहनत करो
की दसवीं भी पास हो जाओ । “निशी मैम बोली।
“जी मैम मैं बहुत मेहनत करूंगी।”रेशमा बोली।
“और हां मैथ्स का भी ट्यूशन लगा लो ,उसकी
फीस हर महीने मैं दूंगी। तुम हर महीने मुझसे
ले लिया करना। ” मैथ की अध्यापिका नीना
मैम बीच में बोल पड़ीं।
रेशमा कुछ देर तक उनकी ओर ही देखती रही मानों साक्षात ईश्वर सामने खड़े हों।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली