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बसंत

आया जब ही अनंग जन-जन में उमंग,

 छाया चहूं ओर रास जग हर्षित है ।

सुरभित है सुमन मंद मंद चले पवन,

 अमुवा के बौरन से मही महकत है।

केसरिया है बिहंग केसरिया अंग अंग,

 अंगरा सों केसरिया पलाश दहकत है।

सुन कोयल की कूक उठे हृदय में हूक,

 प्राण धन राधा के मथुरा बसत है।

शशि की सलोनी छवि सर प्रतिबिंब लखि,

वन देवी श्रृंगार को मानो दर्पण है।

तप छूटे साधु संत मोहित है दिग दिगंत,

 नैन मिला सुनैनी से मुख निरखत है।

हाथों से छूटी माल पंच शर है विशाल,

 देख सौंदर्य देव धरा उतरत है।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी, साईंखेड़ा नरसिंहपुर मध्यप्रदेश

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