ज़ख़्म अल्फ़ाज़ों के थे
दवा करते भी कैसे
ख्वाबो आंखों ने देखे थे
मुक़्क़मल होते भी कैसे
सब ख़त्म हो रहा था
मेरी आँखों के सामने
तदबीर कुछ होती तो
फ़ना होते भी कैसे
फ़ासले न होते तो
ज़ुदा होते भी कैसे
मल्लिका ए दिल थी
दग़ा देते भी कैसे
तड़प दिल की
अब रुकती नही है
बिते हुये पलों की
कहानी बनेगी कैसे….
आरिफ़ असास
दिल्ली