Latest Updates

भिखारी

भिखारी होना
आसान नहीं
रखना पड़ता है गिरवी
अपना अहम
अभिमान
मान सम्मान
को मिटाकर

वाणी में रखनी पड़ती है
मिठास कुछ भी कहे लोग
तब भी रखनी पड़ती है
दीनता
शरीर में लानी पड़ती है
मालिनता
आंखों में बेबसी
लाचारी या
कोई दैहिक अपंगता

शरीर के साथ मन
को भी अकर्मण्य
बनाना पड़ता है
रखना पड़ता है भरोसा
भाग्य पर

कभी मिल जाता है
बहुत कुछ
कभी-कभी
पड़ जाते हैं फाखे
कभी हालात बना देते हैं
देते भिखारी

कभी-कभी कुछ न
करने की
हसरत भी बना देती है
भिखारी
कभी-कभी
शारीरिक अपंगता
भी ला देती है लाचारी

पर कुछ ऐसे भी हैं
इसे एक रोजगार बना लेते हैं
और
जो बेबस और लाचार हैं
उन्हें अपने कर्मों से
उपहास का पात्र बना देते हे।

डाँ अरुणा पाठक रीवा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *