एक प्रसिद्ध पत्रिका में लिखी हुई समस्या उसे अपने एक परिचित की समस्या सी लगी। थोड़ा सा और पता करने पर उसे महसूस हुआ कि यह कहानी तो शायद उसी परिचित व्यक्ति की ही है । उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर अपने मायके में रह रहीं थीं । वे उनके ही पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी थे ।
वर्मा जी एक साधारण से कदकाठी के,साँवले रंग के तथा साधारण नाकनक्शे वाले एक दुबले पतले व्यक्ति थे ।उनकी शादी उनसे लगभग दस साल छोटी लड़की से हुई थी जो बेहद सुन्दर भी थी । इस बेमेल शादी के ही कारण दोनो में ज्यादा दिन नहीं पटी और अन्ततः पत्नी
अपने मायके जाकर रहने लगीं । उन्हें थोड़ा-सा अपने रसूखदार भाईयों पर भी घमंड था किन्तु वर्मा जी के पास एक छोटी सी नौकरी के सिवाय कुछ भी नहीं था । वर्मा जी ने अपनी पत्नी को बहुत समझाने की कोशिश भी की पर वे नहीं मानीं । पत्नी के मायके जाने के बाद वे
उदास रहने लगे किन्तु स्वाभिमान भी तो कोई चीज होती है अतः वे अपने ससुराल जाने से कतराते रहे ।
“वर्मा जी इस किताब में पूछी गयी समस्या आपकी समस्या से काफी मेल खाती है। कहीं आपने ही तो नहीं ? श्रीमती जान्हवी जी ने वर्मा जी से आखिर पूछ ही लिया ।
“भाभी जी अब आपसे क्या छिपाना ? मेरी ही समस्या है ,मैने ही नाम बदलकर पूछा है ।क्या करूँ मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ती कि ससुराल जाकर उससे मिलूँ या पत्र लिखूँ ,पता नहीं वह क्या करेगी ,मेरी तो समझ में ही नहीं आता ।” कहते कहते वर्मा जी की आँखो से दो बूँद आँसू टपक ही पड़े ।
“कोई बात नहीं भाई साहब आप पत्र तो जरुर लिखिए, बहुत होगा वह जवाब नहीं देंगी और क्या होगा ?”जान्हवी जी ने समझाया तो वर्मा जी पत्र लिखने को भी तैयार हो गये ।
पत्र लिखकर उन्होने पोस्ट करने के लिए टेबल पर रख दिया और किसी काम में लग गये। जान्हवी जी ने उस मौके का फायदा उठा कर वर्मा जी से कहा कि उन्हें भी अपनी चिट्ठी पोस्ट करनी है अतः वे चाहें तो अपनी चिट्ठी पोस्ट करने के लिए उन्हें दे सकते हैं । वर्मा जी ने एक
आज्ञाकारी बच्चे के समान अपनी चिट्ठी उन्हें थमा दी और खुद ड्यूटी पर चले
गये ।
कुछ दस पन्द्रह दिनों के बाद सुबह सुबह अटैची हाथ में लिए उनकी पत्नी दरवाजे पर खड़ी थीं । वर्मा जी उन्हें देखकर हड़बड़ा से गये। उनको लगा कि कहीं वे सपना तो नहीं देख रहे हैं । कुछ क्षणों के बाद वे आगे बढ़करअटैची थाम लेते है और उनकी पत्नी चुपचाप उनके पीछे-पीछे घर के अन्दर दाखिल हो जाती है । दोनों ही काफी देर तक एक दूसरे से शिकवा शिकायत करते रहे फिर माफी माँगने की बारी आयी ।
कुछ महीनों बाद अचानक वर्मा जी की निगाह पत्नी के साड़ी के तह से गिरी हुई चिट्ठी पर पड़ी । अरे यह किसकी रायटिंग है ? उत्सुकतावश पत्र खोला तो तो दंग रह गये यह तो उन्होंने लिखी ही नहीं थी । पत्नी को भी लगा कि राइटिंग तो उनके पति की नहीं है । फिर यह पत्र लिखा किसने ? वर्मा जी परेशान
से थे कि उनकी चिट्ठी बदल कैसे गयी ? और यह पत्र किसने भेजा होगा ?
“जिसने भी भेजा होगा आपका शुभचिंतक ही होगा और इस पत्र ने आपको मिला दिया अतः यह पत्र बहुत कीमती भी है ।” जान्हवी जो चुपके से उनकी बातें सुन रही थी घर के अन्दर आते हुए बोली ।
अब तक वर्मा जी को सारी बात समझ में आ चुकी थी । एक प्यारे से झूठ ने उनके घर को उजड़ने से बचा लिया था या यूँ कह लें कि उनके उजड़े हुए घर को फिर से बसा दिया था।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली