आजकल बाबाओं का ट्रेंड चल गया है, एक गया तो छः महीने में दूसरा आना ही है लाइमलाइट में। देखते हैं इस बार वही हाल है या फिर बाबा कमाल है। कमाल से याद आया कि चाची 420 फ़िल्म की तरह किसी ने भी बाबा 420 फ़िल्म नहीं बनाई।
मुंह में पान चबाते हुए एक सज्जन बोले “अंधभक्ति का चोला ओढ़े इतनी जनता आती कहाँ से है? जबकि जिससे भी पूछों सब कहेगें हम तो अंधभक्त नहीं हैं, हम तो आंख खोलकर बाबाओं पर भरोसा करते हैं।”
पान बेचने वाले दुकानदार ने कहा “कोई धर्म कभी पाखंड का साथी नहीं होता, ना ही मर्यादाहीन। फिर ये नयी-नयी उपज कहां से हो जाती है, जो भक्तों की श्रद्धा पर ही चोट कर जाती है। आंखे कितनी भी खोलकर रखो जब अंतर्मन पर ही पट्टी बंधी है तो क्या खुलेगी आंखें। भक्ति में इतनी शक्ति है कि बाबा गए अंदर तो भक्तों का शुरू हो जाता है बाहर तांडव। फिर वह ना देखते आसपास फिर मिटाते हैं वही तो वस्तुएं होती हैं खास।”
सज्जन थोड़ा मुस्कुराये बोले “अच्छी भक्तों की बात उठाई, मुझे एक किस्से की याद दिलाई। कुछ समय पहले एक बाबा जेल गए थे, वहां के थानेदार ही उनका भक्त निकला और सारी सुख सुविधाएं जेल में दे दी। अब बाबा जी भक्तों के लिए जेल में हैं लेकिन हैं आराम से। ज्ञान बांटते हैं बाकी कैदियों को और जेल में भक्त जुटाते शान से। कुछ महीनों में बेल मिल जाती है तो घर पर आराम से छुट्टियां बिताते हैं, कुछ तो जाकर विदेश भी घूम आते हैं। न्याय व्यवस्था की कमी सबको ले डूबी बस उभर पाये ये बाबा हैं जो भक्तों को मोहजाल में फंसा ले जाते हैं।”
आसपास खड़े हुए व्यक्तियों के चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी जैसे उनके मन की बात बिना बोले ही मैदान में आ गयी।
फिर उस सज्जन व्यक्ति की नजर दुकानदार की दुकान में रखे पान के मसालों पर पड़ी तो पाया कि “बाबा इलाइची, बाबा लौग, बाबा 300, बाबा 120, बाबा पान मसाला, लक्ष्मी गुलकंद, चमनबहार और बाबाओं का हो गया पान पर भी अधिकार।” पैसे देने के लिए जैसे ही जेब में हाथ डाला केसरिया नोट पहले हाथ में आया। पान चबाया और बाबा के पोस्टर लगे खम्बे पर नीचे ही पीक डाला।
फिर सज्जन बोले “दान एक ऐसा पुण्य का काम है जिसे सभी करना चाहते हैं और आजकल कुछ लोगों ने धर्म को पैसा कमाने का एक साधन समझ लिया है और बखूबी इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। भूल जाते हैं वह कि भगवा एक रंग नहीं बल्कि एक सच्चाई है। जिसका रंग जब चढ़ता है तो सूर्य-सा अलग चमकता है और जब उतरता है भक्तों के भरोसे को तोड़कर तो सफेद रंग ही सजता है।
सूर्य में सात रंग होते हैं फिर भी सफेद रंग ही दिखता है बाकी सात रंग इन्द्रधनुष की छटा में सिमट जाते हैं। सफेद रंग तो शांति का प्रतीक है, चाहे घर में हो, शरीर पर हो या कफ़न हो, अलग ही दिखता है।”
दुकानदार बोला- भाईसाहब, शांति मिलना भी सौभाग्य की बात है। शांति की तलाश में लोग बाबाओं की शरण में जाते हैं, उन्हें शांति मिले या ना मिले लेकिन बाबाओं को असीम शांति और भरपूर लक्ष्मी मिलती है जिससे उनकी जिम्मेदारी बन जाती है अपनी दुकान को यूँ ही चलाते रहने की। अब दुकान नहीं चलेगी तो कमाई कैसे मिलेगी। आपने अभी पान खाया, मेरा फर्ज बन गया अच्छा पान बनाने का। फिर चाहे आप पीक कहीं भी थूको, बाबा की कृपा से मुझे क्या? मेरी दुकान तो चल रही है।
सज्जन बड़ी गंभीरता से बोले कि सही बात है। दुकान खोली है तो चलानी भी पड़ेगी। आदमी भले ही कहे की हम तो अंधविश्वासी नहीं है लेकिन जब परेशान होता है या कोई अपना दुःखी है तब इन्हीं बाबाओं की याद आती है और आदमी को पता भी नहीं लगता की वह कब अंधविश्वास में फंस गया है।
सनातन कभी छल कपट का साथी नहीं था। सच है जो वह सामने आना ही है एक दिन, कितना भी राम नाम जपो। सच होगा तो श्रद्धा कायम रहेगी भक्तों की नहीं तो भक्तों का भरोसा जब उठता है, बाबा तब जेल में दिखता है।
दुकानदार बोला कि सही बात है। मेरी दुकान में फायदा है, कंपनी का नाम भले बाबा हो लेकिन धोखाधड़ी नहीं मिलेगी। यहाँ पान के साथ साथ देश दुनिया की खबर भी मुफ्त में मिलेगी।
— जयति जैन नूतन —
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