विधा -संस्मरण
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में श्री राम को जब मैं हिंदू समाज में देखती हूं, तो हृदय बड़ा व्यथित होता है। जब श्रीराम और रामचरित मानस पर लोग उंगली उठाते हैं। तो मैं यही सोचकर मन शांत कर लेती हूं कि दुष्ट, दुर्जन, असुर प्रत्येक युग में जन्मते हैं। चाहे सतयुग, त्रेता, द्वापर ,कलयुग हो।
जब साक्षात श्रीराम के साथ रहते हुए अज्ञानी दुर्जन उन्हें ईश्वर के रूप में नहीं पहचान पाए तो यह तो कलयुग है। मैं जब 50 वर्ष पहले अतीत में झांकती हूं, तो सारी बातें चलचित्र की भांति आंखों के सामने घूमने लगती हैं। भले ही उस समय शिक्षित लोग कम थे किंतु आज के शिक्षित अज्ञानियों की तुलना में बहुत ज्ञानवान थे। उस समय मेरे घर में रात को भोजन के बाद रामचरित मानस पढ़ी जाती थी। लगभग सभी घरों में। मुझे याद है मेरे चाचा रामचरित अर्थ सहित पढ़ते थे। घर के सभी लोग श्रद्धा पूर्वक श्रवण करते थे ।माता-पिता का सम्मान, भाई बहन का प्रेम ,संयुक्त परिवार में प्रत्येक सदस्य का आदर ,और माता-पिता से बढ़कर गुरु का सम्मान और भय बच्चों में होता था ।हमारे छोटे से नगरआर्थिक रूप से धनाढ्य देवरी में सभी वर्गों के लोग सुख शांति से रहते हुए अपने धर्म के अनुसार आचरण करते थे। यहां तक हिंदू-मुस्लिम भी मिलकर एक दूसरे के सुख दुख में भाग लेते थे। उस समय मोबाइल टीवी सिनेमा ना होने के कारण नवरात्रि पर स्थानीय कलाकारों द्वारा पौराणिक कथाओं पर शिक्षाप्रद नाटक होते थे ।बाहर से वर्ष में एक दो बार प्रतिष्ठित बड़ी-बड़ी राम लीला वाले आते थे। जिसे हिंदू हो या मुस्लिम सह परिवार देखते थे ।मुझे याद है हमारे परिवार के सात आठ बच्चे नगर से रामलीला चले जाने के बाद भी महीनो तक रामलीला का अभिनय करके खेलते थे।
मेरे कहने का तात्पर्य है कि उस समय बुजुर्ग ही नहीं बच्चों तक को रामचरितमानस का ज्ञान था ।लेकिन आज बच्चों को पढ़ाई की इतनी प्रतिस्पर्धा है कि पौराणिक कथाओं को सुनने का समय नहीं है। यदि समय मिलता भी है तो टीवी या मोबाइल में व्यस्त रहते हैं ।इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि समाज में युवा पीढ़ी धर्म ,संस्कृति, संस्कार पाप पुण्य का कोई ज्ञान नहीं होने से नशा और अपराधिक प्रवृत्ति में संलग्न होते जा रही हैं ।शासन को चाहिए स्कूलों की पुस्तकों में रामायण महाभारत की शिक्षाप्रद कहानियां सम्मिलित करें ।
शासन को चाहिए कि बच्चों की पुस्तकों में आगरे का ताजमहल कुतुब मीनार चारमीनार आदि ही न पढ़ाकर, पौराणिक, नैतिक शिक्षा की कहानियां भी पढ़ाना चाहिए एवं हमारे भारत के तीर्थ स्थान जो हजारों साल पुराने हैं। उनका महत्व और उन मंदिरों की विशेषताएं भी बताना चाहिए। जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बने हुए हैं।
वर्तमान परिपेक्ष में श्रीराम का ज्ञान जन जन तक पहुंचना अति आवश्यक है। श्री राम का आदर्श हर युग में अनुकरणीय रहा है। कुछ अज्ञानियों को छोड़कर श्री राम आज के परिपेक्ष में भी उतने ही बंदनी अनुकरणीय हैं जितने त्रेता युग में थे।
हेमलता राजेंद्र शर्मा मनस्विनी,साईंखेड़ा नरसिंहपुर मध्यप्रदेश