दिल के ज़ख़्म…..
ज़ख़्म अल्फ़ाज़ों के थेदवा करते भी कैसेख्वाबो आंखों ने देखे थेमुक़्क़मल होते भी कैसे सब ख़त्म हो रहा थामेरी आँखों के सामनेतदबीर कुछ होती तोफ़ना होते भी कैसे फ़ासले न होते तोज़ुदा होते भी कैसेमल्लिका ए दिल थीदग़ा देते भी कैसे तड़प दिल कीअब रुकती नही हैबिते हुये पलों कीकहानी बनेगी कैसे…. आरिफ़ असासदिल्ली