अँधेरे और उजाले
गंगा के किनारे, यूँ हीं नहीं लगी है भीड़ साहब। लोगों ने पाप किये होंगे शायद बेहिसाब।। और वो कहता है मुझको, आओ कभी मेरे भी द्वार। गर करते हो मुझे से प्यार, बिना किसी दरकार।। काश! वो तो, मेरी हैसियत ना पूछता। अच्छा होता, गर वो मेरी खैरियत को पूछता।। उनका पैग़ाम नफ़रत था,…