राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
तुकबंदी का दौर आ चुका है और यह तुक बंदी उत्तरप्रदेश से प्रारंभ हुई है । वहां के मुख्मंत्री ने एक नारा दिया ‘‘बंटेगें तो कटेंगें’’ अब इस नारे की काट खाजने के लिए तुकबं दी प्रारंभ हो गई । समाजवादी पार्टी ने अन्त्याक्षरी के जैसे इसे लपक लिया और बहुत सारी तुकबंदी प्रस्तुत कर दी । यह अभी थमी नहीं है क्योंकि इन बहुत सा तुकबंदियों में से कोई भी तुकबंदी वैसे लोगों की जबान पर नही चढ़ पा रही है जैसे बंटेगें तो कटंगें चढ़ गई है । योगी जी ने अपना नारा नही बदला पर समाजवादी पार्टी रोज नए-नए नारे गढ़ कर आमजनता के बीच ला रही है ताकि कोइ तो जनता को पसंद आ जाए और वे फिर उसे फाइनल कर दें । बंटेंगें तो कटेंगें नारा उत्तरप्रदेश से ओ बढ़ कर मुम्बई तक जा पहुंचा वह तो झारखंड भी जा पहुंचा है । जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं, वहां-वहां है नारा पहुचता जा रहा है । चुनाव अब विकास की बातों से कहां लड़ा जाता है, चुनाव अब ऐसे ही नारों और आरापों से लड़ा जाने लगा है । आरोपों की अंत्याक्षरी भी जारी है । ऐसे ऐसे आरोप की सुनने वाला माथा पीट ले, पर मजे की बात यह है कि बोलने वाले को मजा आता है । महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव चल रहे हैं और नेताओं की जनसभाएं भी । जनसभाओं में अब जन नही आता पार्टी के लोग ही आते हैं या वे भी आ जाते हैं जिन्हें पार्टी के नेता खींच कर ले आते हैं । वे बैठे ऊं,ाते रहते हैं और सभा समाप्त होने की राह देखते रहते हैं । कई बार तो लाते समय उनका स्वागत बारात की तरह होता है पर लौटते समय सारे स्वागतकर्ता गायब हो जाते हैं, वह बेचारा अपना वाहन खोजता हुआ घूमता रहता है । चुनावी सभाओं का आंनद खत्म हो चुका है । ये सभायें भी अब आंकड़ों के खेल में तब्दील हो चुकी हैं । उनका सभा में तिने आए और उनकी सभा में कितने । इस बिचार किया जाने लगा है कि चुनाव का परिणाम क्या होने वाला है । खाली कुर्सियों की फोटो दिखाई जाती हैं और परेशान श्रोता की आवाज सुनाई जाती है । जो सभा में बैठा है वह नेतां की बातों को कितना सुन रहा है और सुन भी रहा है तो कितना समझ रहा है यह कोई नहीं जानता । आम जनता इसे प्रहसन समझती है सभा में बैठना मजबूरी फिर वह सभा प्रधानमंत्री की हो या राहुल गांधी की हो । राजनीतिक पार्टियां आमजनता के बदले हुए रूख को समझने लगी हैं इसलिए अब सारा कुछ घोषणापत्र में लिख देते हैं । घोषणापत्र भी आम आदमी नहीं पढ़ता तो उसके बड़े-बड़े बैनर बनवाकर लटकवा देते हैं । आओ पढ़ो देखो हमने महिलाओं के लिए घर बैठे रहने के इतने पैसे देने का वायदा किया है । यहां भी अन्त्याक्षरी चलती रहती है, तुम इतने पैसे दोगे फिरी में तो हम इतने देगें । बोली लग रही है फिरी में पैसे देने की । लोग आनंद ले रहे हैं घर बैठे-बैठे इतना सारा पैसा यूं ही आ जाएगा । अब काम करने की क्या जरूरत है । वे लोग परेशान हो रहे हैं जिनके यहां ये काम कर मेहनत का पैसा लेते थे । अब उनके पास काम करने वाले नहीं है जिन्हें काम करना चाहिए उन्हें सरकार घर बैठे-बैठे ही पैसा दे रही है । गजब का गणित है चुनाव का । रोजगार के अवसर देना चाहिए ताकि आमजन मेहनत करे और कमाकर खा ले पर वे रोजगार के अवसर नहीं देना चाहते वे केवल पैसे दे रहे हैं ‘‘आपको काम करने की क्या जरूरत है, पैसा लो, फिरी का राशन लो और मजे करो’’ । यह राजनीति समझ से परे हैं । आमजन काम नहीं करेगें तो विकास कैसे होगा । पर वे विकास की बातें कर ही कहां रहे हैं । जो विकास हुआ बरसात में उसकी तस्वीरें सभी ने देखीं । बिहार में तो पुल ऐसे गिर रहे थे जैसे पतझड़ में पेड़ों से पत्ते गिर रहे हों ऐसे विकास की क्या जरूरत । बिहार ही क्यों अन्य प्रदेशों में भी विकास ऐसे ही झांकता दिखाई दिया । तो उन्होने विकास की बात करना ही बंद कर दिया आप तो पैसे लो और घर पड़े रहे । कांग्रेस ने सबसे पहले इसे मध्यप्रदेश में प्रारंभ किया महिलाओं को घर बैठे पैसे देने की योजना बनाई इसे तात्कालीन शिवराज सरकार ने ग्रहण कर लिया और ‘‘लाड़ली बहना’’ के नाम से मशहूर कर दिया । भाजपा मध्यप्रदेश में जीती तो सभी को लगा कि लाड़ली बहिनों ने जिता दिया तो फिर यह डत्तीगढ़ से होती हुई कर्नाटक से गुजरती हुई महाराष्ट्र तक आ पहंची है । केन्द्र ने भी लख्पति दीदी के नाम से योजना शुरू कर दी । अब महिलायें घर बैठकर पैसा कमायेगीं राशन तो उन्हें फिरी में मिल ही रहा है । काम की क्या जरूरत । यदि महाराष्ट्र में भी बहिनों ने उन्हें जिता दिया तो अब यी सारे प्रदेशों में लागू हो जायेगा, फिर इसकी राशि बढ़नी प्रारंभ होगा एक समय ऐसा आयेगा कि कोई न कोई दस हजार रूप्या महिना तक यूं ही देने का वायदा कर देगा । प्रदेश का सारा बजट इसमें खत्म हो जाता है । मध्यप्रदेश में लगभग हर महिना कर्जा लेकर वायदा निभाया जा रहा है तो वे विकास कैसे करेगें । इसलिए ही उन्होने विकास के वायदे ही देने बंद कर दिए अब केवल यह बताते हैं कि आपको क्या-क्या फिरी में मिलने वाला है । आमजन से अपेक्षा करते हैं कि वे सभी राजनीतिक दलों के फिरी वाले वायदों का चार्ट बना लें औी जो सबसे अधिक फिरी मे दे रहा है उसे वोट दे दें । कांग्रेस अध्यक्ष खरगे जी ने सही कहा कि वायदा करने से पहले अपना बजट तो देख लो कि वायदा निभा पाओगे की नहीं । योजना यदि बीच में ही बंद कर देनी पड़ी तो ज्यादा नुकसान होगा । पर चुनाव जीतने के लिए कुछ भी वायदा करने की होड़ मची है । वैसे मतदाता अब पहले जैसा भोला-भाला नहीं रहा कि आप चुनाव की भर्राशाही में कुछ भी बोल दो और आम मतदाता एक कान से सुनकर दूसरे कान से उसे निकाल दे । वह हर एक वायदा याद रखता है फिर उन्हें पाने के लिए हल्ला करता है । कांग्रेस के खटा-खट वाले वायदे को लेकर तो ऐसाही हुआ । मतदाता कांग्रेस के कार्यालय में पहुंच गया था कि आपने वायदा किया था उसे निभाओ…..हमें क्या मतलब आप सत्ता में आए या नहीं हमने तो अपनी वोट आपको दी है तो वायदा तो आपको निभाना पड़ेगा । वैसे ऐसा मतदाताओं को करते रहना चाहिए ताकि सनद बनी रहे । वायदे केवल चुनावों की भेंट ही न चढ़ जाएं । जब वायदे न निभा पाएं तो सबक भी सिखाया जाए । महाराष्ट्र में तो महाअघाड़ी और महायुति के बीच संघर्ष चल रहा है, वहां शरद पवार से विद्रोह कर बनी पार्टी और शिवसेना से विद्रोह कर बनी पार्टी कांग्रेस और भाजपा के कांधों का सहारा लेकर वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है । लोकसभा चुनावों में महाअघाड़ी को सफलतमा मिली थी तो वे उत्साहित भी हैं इधर भाजप पिछली बार का धोखा खाकर सतर्क है । भाजपा ने सबसे अधिक सीटें लेकर चुनाव लड़ रही है ताकि वह अपने बल पर अपना बहुमत लेकर आ जाए फिर जिसे उसके साथ रहना हैवह रहे नहीं तां चला जाए । अभी तक भाजपा के साथ ऐसा नहीं हा पाया था उसे किसी न किसी के सहारे की आवश्यकता होती थी और उसमें वह धोखा भी खती थी । पिछलीबार शिवसेना न्र उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा को ही छोड़ दिया था । तब ही तो भाजपा ने शिवसेना ही तोड़ दी और कम विधायक होने के बाद भी एकनाथ सिंदे को मख्यमंत्री बना दिया यहां तक उपमुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस को बनाया जो उन्हें रूचिकर नहीं लगा पर फिर उन्हेने पार्टी के आदेश को मान लिया । इस बार भाजपा सतर्क है और सह लगभग तय है कि एकनाथ शिंदे इस बार मुख्यमंत्री नहीं बनेगें, मुख्यमंत्री तो देवेन्द्र फणनवीस ही बनेगें यदि महायुति को सीटें अधिक मिलती हैं तो । महाअघाड़ी में अलग स्थिति है । उद्धव ठाकरे अपने आपको मुख्यमंत्री घोषित किए हुए हैं । महाअघाड़ी में सारे दल लगभग एक जैसी संख्या में चुनाव लड़ रहे हैं अब देखना यह है कि किस दल को कितनी सीटें आती हैं यदि कांग्रेस का ज्यादा सीटें आ गई तो फिर मुख्यमंत्री का द्वन्द तो मचेगा पर नहीं आ पाई तो उद्धव ठाकरे जिन्दाबाद । महाराष्ट्र का चुनाव आरापों और प्रति आरोपों के साथ चल रहा है । उद्धव ठाकरे के चापर की जांच की गई तो उन्होने आरोप लगा दिया किवपक्ष को परेशान किया जा रहा है फिर क्या है भाजपा को अपने नेताओं की भी जांच करानर पड़ी ‘‘भैया देख लो हमारी भी जांच हो रही है’’ । प्रहसन एक जैसा पर मन्तव्य अलग अलग । झारखंड में भी धमाचौकड़ी मची है । वहां नेताओं से ज्यादा ईडी की दखल महसू हो रही है । बीच चुनाव में जाने कितनी जगह ईडी ने छापेमारी की । हांलाकि यह कोई नियम नहीं है कि चुनाव चल रहे हों तो ईडी छापा नहीं मार सकती पर फिर भी प्रश्न तो खड़े होने ही थे तो हो रहे हैं । इस ईडी की छापामारी से कितना लाभ किसको मिलेगा और किसको कितना नुकसान होगा वो तो चुनाव के परिणामों के बाद ही पता चलेगा । पर इतना तो तय है कि वहां राजनीतिक दलों के साथ ही साथ ईडी भी अहम भूमिका निभा रही है । बंगालादेशी नागरिकों की घुसपैठ का मुद्छा भाजपा ने उठाया और पूरे प्रचार में इसे गहराया । हेमन्त सोरेन खुद ही जेल होकर आए हैं और उनके निकट के नेता चंपई सोरेन को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है तो कुछ तो हेमन्त सोरेन कमजोर लग रहे होगें । अब चुनाव परिणामों से सारा कुछ साफ होगा । इन दो प्रदेशों के चनाव निपट जायेगें तो फिर नये प्रदेशों के चुनावों की तैयारी प्रारंभ हो जायेगी हमारे देश में चुनाव अखंड चलने वाली प्रक्रिया है इस कारण से ही तो ‘‘एक देश एक चुनाव’’ के बिल को लाने की तैयारी चल रही है ।