दरिया ए इश्क-इब़ादत की मुश्क
कविता मल्होत्रा प्रेम है दरिया आग का,उल्टी है इसकी धार जो उतरा सो डूब गया,जो डूब गया वो पार ✍️ अपनी दृष्टि को विस्तार देकर ही सृष्टि के आधार को समझना सँभव है, वर्ना दृष्टिकोण के अभाव में तो शिक्षित लोग भी अशिक्षितों जैसा व्यवहार करने लगते हैं। ✍️ जैसे तुम सबके वैसे ही मैं…