“इतने सालों से हम अलग रहते आए हैं। हमारा एडजस्टमेंट नहीं होगा किसी के साथ। हम अपनी प्राइवेसी खत्म नहीं कर सकते हैं। कहां बाबूजी पुराने विचारों के, और कहां हम मॉडर्न सोसाइटी में रहने वाले लोग।” नीता समर्थ को सुना रही थी क्योंकि माँ के देहांत के पश्चात समर्थ के पिताजी उनके साथ रहने जो आ रहे थे।
समर्थ बहुत असमंजस में था कि क्या करें?
पहले तो उसके माता-पिता गांव में दोनों मिलकर रह लिया करते थे। लेकिन मांँ के देहांत के पश्चात पिताजी को गुजारा करना मुश्किल हो रहा था। वैसे भी गांव के बहुत से लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे थे।
नीता अपनी सारी हदें पार कर रही थी। वह उसके बाबूजी को अपने घर पर घुसाना ही नहीं चाह रही थी। समर्थ मानसिक पीड़ाओं से गुजर रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें? बसी बसाई घर गृहस्थी भी देखनी है और अपने जन्मदाता की तरफ फर्ज भी निभाना है। समर्थ घुटे जा रहा था मन ही मन। अधेड़ अवस्था में व्यक्ति परिवार के सदस्यों पर अधिक आश्रित हो जाता है। उसका स्वयं का अस्तित्व तो पता नहीं कहां चला जाता है। यही स्थिति समर्थ की थी।
रविवार का दिन था। सब नाश्ता करके निबटे ही थे कि तभी दरवाजे पर डोर बेल बजी तो नीता का मुंह बन गया कहीं उसके ससुर ना आ गए हो। लेकिन सामने अपनी मांँ को देखकर वह सका-पका गई। मांँ की हालत भी फटीचर सी ही लग रही थी। मांँ के गले लग कर नीता बोली, मम्मी तुम्हारी ऐसी हालत कैसे?
नीता की मांँ रोते हुए बोली तेरे भैया-भाभी ने मुझे घर से बाहर कर दिया है। बहु कहती है,”कहीं भी जाओ, अब तुमसे हमारा कोई मतलब नहीं है?
सारा जोड़ा जकोड़ा मुझे निकलवा लिया तेरी भाभी ने।
नीता यह सुनकर आग बबूला हो गई। ऐसे कैसे कर सकती है वह। घर तो सबका है। वह कौन होती है मालकिन बनने वाली।
नीता अंगार की तरह दहकने लगी।
उसकी माँ बोली बहु कहती है,”तुम्हारी बेटी भी तो अलग रहती है ना। उसने कौन से अपने ससुर को गले लगा रखा है। गांव में छिटके पड़े रहते हैं अकेले।” अपनी माँ की हालत को देखकर आज नीता को एहसास हुआ अपनी गलतियों का। बड़े-बूढ़े तो बट वृक्ष हैं। जरा सी आजादी के लिए उन्हें अलग तो नहीं किया जा सकता। वह रोते-रोते समर्थ से बोली,”मुझे माफ कर दो। मैं कितनी गलत थी। बाबूजी को गांव से ले आओ। अब हम सब लोग मिलकर ही रहेंगे।”
इतने में उसके भैया भाभी भी आ गए। सब मिलकर हंसने लगे। उसकी माँ का भी चेहरा मुस्कुराने लगा। नीता समझ नहीं पा रही थी क्या हुआ?
दरअसल समर्थ जब बहुत अधिक परेशान हो रहा था तो उसने अपने साले से बात की। नीता को सबक सिखाने के लिए सबने मिलकर योजना बनाई थी।
नीता खिसिया रही थी। उसकी माँ बोली,”मेरी बहू तो लाखों में एक है। इतना गिरा हुआ काम नहीं कर सकती। मेरी परवरिश में कहां कमी रह गई जो तू अपने ससुर के साथ इस तरह का व्यवहार कर रही है। बेटी परिवार तो परिवार के लोगों से होता है, बरना तो चार दिवारी कितनी ही खड़ी कर लो। जिन्होंने सदैव अपना दायित्व निभाया हो। आज तुम्हारा दायित्व की बारी है तो तुमने मुंह फेर लिया।
नीता को एहसास हुआ गलतियों का। उसने अपनी मम्मी को भी बहुत धन्यवाद किया कि उन्होंने सही समय पर उसे सही सलाह दी। आज उसका घर बर्बाद होने से बच गया। परिवार में अगर लोग सेतु का काम करें तो रिश्ते टूटने से बच जाए।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश