राम हिंदू संस्कृति का प्रतीकात्मक शब्द है। राम शब्द के उद्बोधन में ईश्वरत्व का आभास होता है। राम शब्द हमें उस अलौकिक शक्ति का एहसास कराता है जो इस पूरे ब्रह्मांड का रचयिता है, जिस शक्ति के आगे बड़े से बड़े ऋषि और बड़े से बड़े वैज्ञानिक भी नतमस्तक होते हैं। फिर प्रश्न यह है कि आखिर क्या है इस शब्द में जो आदिकाल से लोगों के मनों में रमसम गया है, तो इसलिए पहले इस शब्द की व्युत्पत्ति ही देख लें। राम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है– रम और घम । रम का अर्थ है रमण या समा जाना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड, इस तरह रम धातु में प्रत्यय लगाकर राम शब्द बनता है। राम शब्द का एक और भी अर्थ है र यानी प्रकाश और म अर्थात मेरे अंदर, मेरे अंदर प्रकाश। इसीलिए राम शब्द पूरे ब्रह्मांड में समाया हुआ है, राम प्राणी मात्र के हृदय में रमण करते हैं भक्त जनों के हृदय में समाहित रहते हैं। “राम” शब्द का उच्चारण ही वातावरण को तेजोमय बना देता है वेदों में जिस परम तत्व का वर्णन है राम उसी का विग्रह रूप है।
राम केवल शब्द नहीं एक विचारधारा है, एक सोच है। इसी विचारधारा को आधार बनाकर उल्टा पढ़ने पर भी एक डाकू ऋषि बन गया। त्रिकाल दर्शी हो गया और जनमानस के मन में बस जाने वाली राम कथा का निरूपण कर दिया और डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि कहलाये। इसी सोच के कारण वह कह पाए-
मा निषाद ! प्रतिष्ठाम् त्वम् गमः शाश्वती समाः
यत् क्रोंच मिथुनात् एकम् अवधि काममोहितम् ॥
इसी “राम” शब्द की विचारधारा ने वाल्मीकि को प्रेरित किया कि यदि मैं एक श्लोक बिना किसी विचार के अनुष्टुप छंद में लिख सकता हूं तो क्यों ना मैं राम को आधार बनाकर पूरी रामायण लिख लूं। कहा जाता है कि रामायण पहले लिखी गई और राम बाद में अवतरित हुए। राम के जन्म से पहले भी ‘राम’ शब्द का प्रयोग नारायण अर्थात् परमेश्वर के लिए किया जाता था।
राम शब्द की महत्ता इसी बात से परिलक्षित होती है कि अनादि काल से अभिवादन हेतु राम राम का उच्चारण किया जाता है। दो बार राम का उच्चारण करने से 108 वर्णों का उच्चारण होता है और 108 की संख्या हिंदू शास्त्रों में अति पवित्र और शुभ मानी गई है। आज भी राम-राम कहने की परंपरा गांव हो या शहर सभी जगह देखी जाती है।
राम शब्द के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है–
करहूं कहां लगी नाम बड़ाई राम न सकही नाम गुण गाई ||
अर्थात् राम भी ‘राम’ शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते। राम विश्व संस्कृति के अलौकिक नायक हैं। वे सभी मानवीय गुणों के प्रतीक हैं पालक हैं, संवाहक हैं, राम एक आदर्श पुत्र, भाई, मित्र, पति, शिष्य और राजा हैं।
हे राम। तुम राम हो,
सृष्टि के आदि और विराम हो, तुम माता-पिता के गर्व हो, सीता के सर्वस्व हो, संसार के आदर्श हो, नरेशों के उत्कर्ष हो, हे रघुनंदन। हे दुखभंजन सीतारंजन ! जितने रावण जन्म चुके हैं,
उन सब का होगा कैसे भंजन |
लता गोयल
द्वारका
दिल्ली