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लुईस ब्रेल के आविष्कार ने दृष्टिबाधित दिव्यांगों की शिक्षा में क्रांति को जन्म दिया

#(विश्वब्रेलदिवसपरविशेष)

भगवान द्वारा दिया गया सबसे कीमती उपहार इस रंगीन और खूबसूरत दुनिया को देखने की क्षमता है। अफसोस की बात है कि दुनिया में हर कोई इसे नहीं देख सकता। हालांकि 1829 में लुई ब्रेल ने ब्रेल का आविष्कार करके अपने अंधे समाज को एक महान उपहार दिया। हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस इसके आविष्कारक लुई ब्रेल के जन्म की याद में मनाया जाता है।ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन ढांचा है जो नेत्रहीन और आंशिक दृष्टि वाले लोगों को उभरे हुए बिंदुओं का उपयोग करके स्पर्श द्वारा पढ़ने की अनुमति देता है। ब्रेल पाठकों की लिखित शब्द तक उतनी ही पहुंच होती है, जितनी कि देखे गए पाठकों की होती है और वे अपने शेष जीवन के बारे में पढ़ सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व भर में करीब 39 मिलियन लोग देख नहीं सकते जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है।दुनिया भर में लगभग 2.2 बिलियन लोगों को निकट या दूर दृष्टि दोष है।

ब्रेल क्या है?

ब्रेल वर्णमाला और संख्यात्मक प्रतीकों की स्पर्श आधारित ऐसी प्रणाली है, जिसमें प्रत्येक अक्षर और संख्या, और यहां तक कि संगीत, गणितीय और वैज्ञानिक प्रतीकों को प्रस्तुत करने के लिए छह बिंदुओं का प्रयोग किया जाता है। ब्रेल जिसका नामकरण 19वीं सदी के फ्रांस में इसके आविष्कारक, लुई ब्रेल के नाम पर किया गया का उपयोग पूर्ण दृष्टिबाधित और आंशिक दृष्टिबाधित व्यक्तियों द्वारा उन्हीं पुस्तकों और पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए किया जाता है जो किसी दृश्य फ़ॉन्ट में छपी होती हैं।

ब्रेल प्रणाली में 63 बिन्दु पैटर्न या वर्ण होते हैं। प्रत्येक वर्ण किसी अक्षर, अक्षरों के संयोजन, किसी सामान्य शब्द या व्याकरणिक चिह्न को प्रस्तुत करता है।बिन्दु पैटर्न प्रत्येक तीन बिन्दुओं की दो लंबवत पंक्तियों की कोशिकाओं में व्यवस्थित होते हैं। ये पैटर्न जब ब्रेल शीट पर उकेरे जाते हैं तो दृष्टिबाधित व्यक्तियों को स्पर्श करके शब्दों को पहचानने में मदद मिलती है।उन्हें स्पर्श करना आसान बनाने के लिए, बिंदुओं को थोड़ा उभारा जाता है। दृष्टिबाधित व्यक्ति ब्रेल प्रणाली को अक्षरों से शुरू करके सीखते हैं, फिर विशेष वर्णों और अक्षरों के संयोजन की जानकारी दी जाती है। सीखने के तरीके स्पर्श से पहचान पर निर्भर होते हैं। हर वर्ण को याद रखना होता है। ब्रेल लिपि को हाथ से या मशीन से बनाया जा सकता है।टाइपराइटर जैसे उपकरण और प्रिंटिंग मशीनें अब विकसित हो चुकी हैं।ब्रेल प्रणाली का उपयोग करके कई भारतीय भाषाओं को पढ़ा जा सकता है।

लुईस ब्रेल कौन थे ?

लुइस ब्रेल का जन्म 04 जनवरी 1809 को फ्रांस के कूपवर में हुआ था। उन्हें दृष्टिबाधित लोगों के लिए ‘ब्रेल लिपि’ का आविष्कार करने हेतु जाना जाता है। साल 1824 में बनी यह लिपि आज विश्व के करीब-करीब सभी देशों में उपयोग में लायी जाती है।बचपन में एक दुर्घटना के वजह से लुइस ब्रेल ने अपनी दोनों आँखों की रोशनी खो दी थी। ब्रेल को फ़्रांसिसी सेना के चार्ल्स बार्बिएर के सैन्य संचार के प्रणाली के बारे में वर्ष 1821 में ज्ञात हुआ।इस प्रणाली में भी डॉट्स का उपयोग किया जाता था परन्तु चार्ल्स का यह कोड बहुत ही जटिल था।

लुइस बेल ने इसके बाद अपनी लिपि पर कार्य शुरू किया। लुइस ब्रेल ने वर्ष 1824 तक अपनी लिपि को लगभग तैयार कर लिया था। वे उस समय महज 15 वर्ष के थे।उनके द्वारा बनाई गई लिपि बेहद सरल मानी जाती है। लुइस ब्रेल का 06 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।

विश्व ब्रेल दिवस 2024 थीम

यह दिवस प्रतिवर्ष किसी न किसी थीम पर आधारित होता है। इस वर्ष विश्व ब्रेल दिवस 2024 का थीम है समावेश और विविधता के माध्यम से सशक्तीकरण यह एक ऐसी दुनिया बनाने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है जहां दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न केवल मान्यता दी जाती है बल्कि समाज के सभी पहलुओं में पूरी तरह से शामिल किया जाता है। यह दृष्टिबाधित समुदाय के भीतर विविधता को अपनाने की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर देता है और एक समावेशी वातावरण की वकालत करता है जो हर किसी को, उनकी क्षमताओं की परवाह किए बिना, आगे बढ़ने और सार्थक योगदान करने में सक्षम बनाता है। यह लिपि आज पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रही है। इस‍ लिपि में स्कूली बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ छपते हैं। ब्रेल लिपि में कई पुस्तकें भी निकलती हैं। ब्रेल लिपि के आविष्कार के बाद विश्वभर में नेत्रहीन, दृष्टिहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगों की जिंदगी बहुत हद तक आसान हो गई। इसकी सहायता से ऐसे कई लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें। इस लिपि के आविष्कार ने दृष्टिबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी। शिक्षा,अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता के साथ-साथ दृष्टिहीन व्यक्तियों के सामाजिक समावेश के लिए ब्रेल लिपि काफी सहायक है। लुइ ब्रेल को दिखाई नहीं देता था, लेकिन फ़िर भी उन्होंने पूरे दृष्टिबाधित समुदाय के लिए बहुत बड़ा उपकार किया ताकि वे भी स्वयं पर आश्रित हो, उन्हें दूसरों का सहारा न लेना पडे। आइए लुई ब्रेल को न भूलें, वह व्यक्ति जो इस शानदार विचार के साथ आया था। उनके आविष्कार ने बहुत से लोगों की मदद की है और उन्होंने जो किया उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए। अतः यह कहना सार्थक है कि लुईस ब्रेल के आविष्कार ने दृष्टिबाधित दिव्यांगों की शिक्षा में क्रांति को जन्म दिया जिसकी बदौलत आज दृष्टिबाधित दिव्यांग देख पाते हैं।

मोनिका शर्मा

विशेष शिक्षा अध्यापिका

दिल्ली

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