बात फिल्मों की करें या उसमें प्रस्तुत संगीत-गीत की वे सब भी हमारे ही बीच से हमारे लिए सृजित होते हैं। फिर एकाएक गीत बनता है- “परदे में रहने दो, परदा न उठाओ परदा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा।”
बात आजकल राजनीति की जोर-शोर से हो रही है। पिक्चर साफ हो चुकी है लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई-जून के प्रथम सप्ताह तक हो जाएगें और जून में ही हमें पता चल जाएगा या कहे परदा हट जाएगा कि किसने सरकार बनाने का दम भरा और कौन सरकार बनाने जा रहा है। परदे के पीछे और सामने खेल जारी है। एक ओर सरकारी मशीनरी जिन्हे स्वतंत्र बॉडी कहा जाता है इनकम टैक्स-ईडी- सीबीआई आदि ने कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज कर दिए जिससे उन्हें चुनाव प्रचार करने तथा अन्य खर्चों के भुगतान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस पर विपक्ष आग बबूला हो रहा है, हो भी क्यों न भाई टाइमिंग पर संशय है- कुछ समय पहले या चुनाव के बाद भी किया जा सकता था। यदि किसी ने गलत किया तो सामना करना ही पड़ता है और करना भी चाहिए किन्तु यदि गलत भावना से प्रेरित है तब उसको भी भुगतना पड़ता ही है। कुछ इसी तरह की हाय तौबा आम आदमी पार्टी के साथ हो रही है। वहाँ तो मानो हाथ धोकर नहीं जैसे उनकी विरोधी पार्टी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके एक के बाद एक मानो सबको तिहाड़ का रास्ता दिखाने पर तुले है। या तो उनके पास यभाजपा मेंद्ध आइये या सलाखों के पीछे जाइये। ऐसा आम आदमी पार्टी के नेतागण प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर बोल रहे है। अब बात जब मुख्यमंत्री तक जा पहुँची तो कार्यकर्ताओं ने जमीन आसमान एक कर दिया। पार्टी का अस्तित्व और सरकार क्यों कर और कैसे जेल से रहते हुए चल सकती है।
परदे में बहुत कुछ खंगालने तलाशने का प्रयास चल रहा है किन्तु मनी लाँडरिंग का मामला अभी ट्रेस नहीं हो रहा है। यहां भी यही कहना है विपक्ष का टाइमिंग यहां भी गलत है।
लेकिन सत्ता के- रुपया-पैसा आदि के मद् में हमें लगता है जो कुछ है वो हम हैं। हमसे आगे हमसे ऊपर कोई और नहीं है। कुछ ऐसे ही मुगालते में बीजेपी भी लग रही थी। विपक्ष को लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते इलेक्ट्रोल बाँड से परदा हटा तो देशवासियों की विपक्ष की न्यायाधीशों की आँखें खुली की खुली रह गई। जो लोग अपराधी कहे जा रहे है और आम आदमी सुप्रीमों अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध सरकारी गवाह बन रहा है। यही भाजपा के 55 करोड़ चन्दा इलेक्ट्रोरल बॉड के माध्यम से देता है। बस फिर क्या था इस तरह के कई दर्जनों केस सामने आने लगे अर्थात विपक्ष को यहां भी परदें के पीछे कुछ समझ में आने लगा है।
अब बात घूम फिर के सबके माई-बाप अर्थात मतदाताओं के पाले में आ गई है। जिन्हें अपने विवेक से पूर्ण जागरूकता के साथ मतदान करना है और अपना भविष्य किन हाथों में सुरक्षित समझते है उन्हें सौंपना है।