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राम नाम लो प्रेम से – मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (सम्पादकीय )

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22 जनवरी अयोध्या में श्रीराममंदिर में श्रीरामजी की भव्य मूर्ति पूरी दिव्यता–वैभवता के साथ प्राण प्रतिष्ठा के साथ विराजित होगी । यह सभी राम भक्तों के लिए गौरव के पल हैं । सौभाग्यशाली पल इसलिए भी कि जो सर्वशक्तिमान हैं, अन्तरयामी हैं उनको ही अपने स्थल पर विराजित होने में इतने दशक लग गये । सच है सुप्रीम कोर्ट में बात गई और वहीं से बात बनी । भारत का संविधान सभी धर्मो को समान दृष्टि से देखना और न्याय देना बताता है । लेकिन गलत को गलत और सही को सही बताने–समझाने में पचासों वर्ष लग जाएं तो यह भी अपने में हास्यप्रद हो जाता है । लेकिन आज पूरा देश राममय हो चुका है । 22 जनवरी को एक ऐतिहासिक दीपावली मनेगी पूरे भारत में । जब कुछ अपने मन का नहीं होता तब हम कह उठते हैं, भगवान की लीला है । 14 वर्षों का वनवास हुआ उसमें भी एक लीला यह थी कि दुराचारियों का खात्मा करना था और सत्य को विजय दिलानी थी । इतने लंबे इंतजार के पीछे क्या प्रभु की लीला रही, यह वही बेहतर नहीं, सिर्फ वे ही जानते हैं । कौन अपना–कौन पराया और इस आयोजन में समर्पित भाव कहां है, कौन इसको किधर प्रयोग करता है – यह भी उनसे छिपा नहीं है । मेरी प्रभु से राम से यही विनती है कि अपना आसन लेकर सभी को सद्बुद्धि प्रदान करें । देश के सभी राज्य उनमें रह रही जनता को भी हम समान दृष्टि–आदर से देखें । देश में सम्पन्नता–वैभवता का बढ़ावा हो और भारतवासी पूरे विश्व की उन्नति में अपना योगदान बढ़–चढ़ कर करें । रूस–यूक्रेन, गाजा–इजराइल में यु( नहीं शांति की स्थापना हो । अपने से और अपनों से भी यही आग्रह–अपेक्षा है कि हम ‘राम’ को माने अवश्य ही, वे पूजनीय है–वंदनीय हैं–अनुकरणीय हैं – मर्यादापुरुषोत्तम हैं लेकिन उनके स्थापित आदर्शों को भी अपनाएँ — भाई–मित्र्–परिवार–समाज व राष्ट्र के प्रति अपने भी भाव उनकी सीख के अनुरूप अपनाएंगे तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में शान्ति की स्थापना हो जाएगी–खुशहाली की फुहार चहुं ओर बरसने लगेगी।
कुछ ही दिनों बाद हम धूमधाम और सम्मान के साथ गणतंत्र् दिवस (राष्ट्रीय पर्व) मनाएंगे । 26जनवरी 1950 को भारत में संविधान लागू हुआ । इसी दिन हमें संविधान मिला और भारत को पूर्ण गणतंत्र् घोषित किया गया । इसीलिए इस दिन को गणतंत्र् दिवस के रूप में बनाया जाता है । राजपथ (दिल्ली) में भव्य आयोजन होता है । सभी विद्यालय–सरकारी, गैर सरकारी उपक्रम, स्वयंसेवी संस्थाएं अपने–अपने तरीके से /वजारोहण करते हैं, राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए देश की उपलब्धियों को स्मरण करते हुए गौरवान्वित होते हैं । यहां हमें देश के संविधान (जो सभी को समानता का अधिकार प्रदान करता है) को नमन करते हुए स्वयं अपने लिए, अपनी संस्था के प्रति एक संविधान , एक संकल्प पत्र् तैयार करना चाहिए जिससे हमारा पथ सुनिश्चित हो कि हमें कहाँ और कैसे पहुंचना है । सबका साथ–सबका विकास–सबका विश्वास कैसे हासिल कर सकते हैं । बातें केवल बातों तक ही सीमित न रहें, उन्हें क्रियान्वित भी करें । तब हम सफल होंगे सभी क्षेत्र् में सबको साथ लेकर ।

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