Ukraine Russia War: संयुक्त राष्ट्र के तमाम प्रयासों के बावजूद रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया। सुरक्षा परिषद की तमाम कोशिश दोनों देशों के बीच जंग को रोक पाने में निरर्थक रही। जंग की शुरुआत के बाद संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने मानवता के नाम पर हमला रोकने की अपील की थी। मास्को ने संयुक्त राष्ट्र प्रमुख की अपील को ठुकराते हुए यूक्रेन सीमा में टैंक के साथ अपनी सेना भेजा है। यह पहली बार नहीं है, जब संयुक्त राष्ट्र दो देशों के बीच शांति स्थापित करने में नाकाम रहा है। इससे पहले भी कई युद्ध संयुक्त राष्ट्र की विफलता की वजह से हुए है। सवाल उठता है कि संयुक्त राष्ट्र का गठन क्यों हुआ? इस संगठन का मकसद क्या है? इसके गठन के बाद कितनी जंग हो चुकी है?
संयुक्त राष्ट्र के गठन का मकसद
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 24 अक्टूबर, 1945 को अमेरिका, रूस सहित 50 से अधिक देश सेन फ्रांसिस्को में एकजुट हुए और उन्होंने एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया। इसको स्थापित करने के लिए एक संगठन बनाने की बात कही गई। इसी के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ। इसी के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मुख्य मकसद पूरी दुनिया में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंग है।
– अमेरिका और वियतनाम युद्ध
संयुक्त राष्ट्र के गठन के महज 10 वर्ष बाद ही अमेरिका और वियतनाम के बीच जंग की शुरुआत हुई। संयुक्त राष्ट्र इसे रोकने में पूरी तरह से विफल रहा। यह संघर्ष करीब 10 वर्षों तक चला। इसमें वियतनाम के करीब 20 लाख लोग मारे गए। इस जंग में 30 लाख से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस जंग में 55 हजार से अधिक अमेरिकी सैनिक भी मारे गए।
2- ईरान और इराक के बीच जंग में लाखों लोगों की मौत
इसके बाद 22 सितंबर 1980 को इराक और ईरान के बीच जंग छिड़ गई। इराकी सेना ने पश्चिमी ईरान की सीमा पर घुसपैठ कर उस पर हमला कर दिया। यह युद्ध करीब आठ वर्षों तक चला। इस जंग को रोक पाने में संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह से विफल रहा। इस युद्ध में इराक ने रासयनिक बम का प्रयोग किया था। दोनों देशों के बीच जानमाल का काफी नुकसान हुआ। इस जंग में करीब 10 लाख लोग मारे गए। इसमें कई निर्दोष नागरिकों की मौत हुई थी।
3- रवांडा में बड़ा नरसंहार, आठ लाख लोगों की मौत
अफ्रीकी देश रवांडा में नरसंहार को रोकने में संयुक्त राष्ट्र नाकाम रहा है। यह संघर्ष करीब 100 दिनों तक चला था। इस संघर्ष में आठ लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी। बता दें कि रवांडा में वहां के बहुसंख्यक समुदाय हूतू ने अल्पसंख्यक समुदाय तुत्सी के लोगों पर हमला किया था। रवांडा नरसंहार में फ्रांस की भी अहम भूमिका थी। फ्रांस सरकार ने हालात को नियंत्रित करने के लिए सेना भेजी थी, लेकिन सेना उसे कंट्रोल करने के बजाए देखती रही। हालांकि, 2021 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस नरसंहार के लिए माफी मांगी थी।
4- बोस्निया के गृह युद्ध को रोकने में नाकाम रहा यूएन
बोस्निया के गृह युद्ध को रोकने में भी संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह से विफल था। इसके समाधान के लिए नाटो को अपनी सेना उतारनी पड़ी। यूगोस्लाविया के विभाजन के बाद वर्ष 1992 में सर्ब समुदाय और मुस्लिम समुदाय के बीच नए राष्ट्र को लेकर कलह शुरू हो गई। इस विवाद में मध्यस्थता करने में संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह से विफल रहा। 1995 में सर्ब सेना ने करीब आठ हजार मुस्लिमों को मार दिया। इसके बाद नाटो को सेना उतारनी पड़ी। इसके बाद वहां स्थिति को नियंत्रित किया गया।
क्या है संयुक्त राष्ट्र का सालाना बजट
वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र का बजट 150 मिलियन डालर यानी करीब 1134 करोड़ रुपए है। यूएन को सदस्य देशों की ओर से चंदे के रूप में ये राशि मिलती है। संयुक्त राष्ट्र को अमेरिका सबसे अधिक चंदा देता है। यूएन की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन स्थाई सदस्य हैं। इन देशों को वीटो पावर हासिल है। वीटो पावर के जरिए ये देश किसी भी मामले को रोक सकते हैं। इसी वजह से यूएन कई बार सुरक्षा और शांति स्थापित करने में विफल हो जाता है। यूएन के महासचिव रहे बुतरस घाली ने अपनी आटोबायोग्राफी में वीटो सिस्टम की निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि अगर वीटो सिस्टम खत्म नहीं हुआ, तो सुरक्षा परिषद स्वतंत्र होकर काम नहीं कर सकेगी। उन्होंने कहा था कि वीटो पावर देश अपने हिसाब से यूएन को चलाना चाहते हैं।