पक्षद्रोह उपन्यास भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर गंभीरता से सोचने का तीव्र आग्रह करता है – शरद सिंह
उपन्यास का अर्थ ही जिंदगी के पास बैठना है – आचार्य
उदीयमान लेखक प्रदीप पाण्डेय के उपन्यास पक्षद्रोह का हुआ विमोचन।
सागर। नगर के उदीयमान लेखक प्रदीप पाण्डेय की प्रथम कृति उपन्यास पक्षद्रोह का विमोचन रविवार को सिविल लाइंस स्थित वरदान सभागार में आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में संपन्न हुआ।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विद्वान वक्ता डॉ.आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में कहा कि लेखक में सत्य को समक्ष रखने का साहस होना चाहिए। लेखक प्रदीप पांडेय ने उपन्यास पक्षद्रोह में देश की बड़ी समस्या को उकेरा है। वे भ्रष्टाचार पर सीधे हमला करते हैं। कृति के लेखक का अनुभव जगत का यथार्थ उपन्यास में दृष्टित है। लेखक सजग दृष्टि से बड़े समाज के व्यापक चिंतन को जनता से लेकर अपना पक्ष रखते हैं। लेखक भ्रष्टाचार से जूझे होंगे तभी लिख पाएंगे। मन्नू भंडारी के महाभोज में भ्रष्टाचार को उठाया गया है। लेखक ने बड़ी बेबाकी और तल्लीनता से भ्रष्टाचार के रेशे-रेशे को उकेरा है। संवादों की भरमार लेखक की व्याकुलता को उजागर करती है। बुन्देली का भाषा प्रवाह है। भ्रष्टाचार को समाज के सामने लाने की छटपटाहट लेखक के उपन्यास में दृष्टव्य है।
चिकित्सक, लेखक और कवि डॉ.मनीष झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि उपन्यास की कथावस्तु सशक्त है। उपन्यास की विषय वस्तु को उल्लेखित करते हैं उन्होंने कहा कि लेखक भ्रष्टाचार के मुद्दे को विक्रम के माध्यम से उठाकर समाज को प्रेरित करते हैं। उन्होंने पुस्तक को पठनीय और विचारणीय कहा।
सुप्रसिद्ध कथाकार व आलोचक सुश्री डॉ.शरद सिंह ने पुस्तक पर समीक्षा वाचन करते हुए कहा कि प्रदीप पांडेय का उपन्यास ‘पक्षद्रोह’ सटायर न होकर एक गंभीर उपन्यास है जो भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर गंभीरता से सोचने का तीव्र आग्रह करता है। यह उपन्यास निश्चित रूप से पाठकों को पसंद आएगा और उन्हें चिंतन – मनन के लिए विवश करेगा। एक समूचा कथानक रिश्वतखोरी के विरुद्ध आवाज़ उठाता है, यह भी अपने-आप में विशिष्टतापूर्ण है। वैसे उपन्यास लेखन की भी अपनी निजी चुनौतियां होती हैं। एक कथानक को संतुलित विस्तार देना और विविध पात्रों को उनका उचित स्पेस देते हुए रोचक तत्वों को समाहित करना सुगम नहीं होता है। कई बार अतिरेक में बह जाने का भय होता है लेकिन उपन्यास लेखन के क्षेत्र में पहलकदमी करते हुए प्रदीप पांडेय ने संतुलन बनाए रखा है जिससे उपन्यास की रोचकता आद्योपांत बनी रहती है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश आचार्य ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि उपन्यास का अर्थ ही जिंदगी के पास बैठना है। जिंदगी में छात्र हैं, चोर हैं, डाकू हैं, शिक्षक हैं। सभी को मिलाकर जिंदगी है। उपन्यास शिक्षा देते हैं। उन्होंने कहा कि लेखक प्रदीप पाण्डेय का यह पहला उपन्यास है। लेखन की सरिता में वे अभी एक सीढ़ी उतरे हैं, धीरे-धीरे उसकी गहराई में डूबकर एक बड़े लेखक के रूप में स्थापित होने की क्षमता उनमें मौजूद है।
कार्यक्रम में युवा समाज सेवी नेवी जैन ने अपने स्नेहिल सान्निध्य वक्तव्य में उपस्थित प्रबुद्धवर्ग व मंच से अपेक्षा की कि किस प्रकार युवाओं के बीच साहित्य को लाया जाए इस पर मंथन की आवश्यकता व्यक्त की। उन्होंने सभी अतिथियों को अपनी ओर से स्मृति चिन्ह भी भेंट किए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन और दीप – प्रज्ज्वलन किया गया। बाल- सरस्वती ऐश्वर्या दुबे ने सरस्वती वंदना की। श्यामलम् अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र ने स्वागत भाषण दिया। संचालन हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष आशीष ज्योतिषी ने किया और सह-सचिव संतोष पाठक ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में उपन्यास के लेखक प्रदीप पाण्डेय का अभिनंदन उन्हें शाल, श्रीफल, पुष्पमाला और सम्मान पत्र भेंट कर मंच और श्यामलम् द्वारा किया गया। जीवन परिचय वाचन स्वर संगम अध्यक्ष हरीसिंह ठाकुर ने और सम्मान पत्र वाचन श्यामलम् सदस्य रमाकांत शास्त्री ने किया।
इस अवसर पर शिवरतन यादव, डॉ गजाधर सागर, आर के तिवारी, डॉ चंचला दवे, डॉ लक्ष्मी पांडे, विनय मोहन फिक्र सागरी,टी आर त्रिपाठी, पीआर मलैया, डॉ शशि कुमार सिंह, वीरेंद्र प्रधान, डॉ.ऋषभ भारद्वाज, राजेंद्र दुबे कलाकार, रविंद्र दुबे, के एल तिवारी, डॉ.सुजाता मिश्र, डॉ.माधव चंद्रा, एड. राजीव अग्निहोत्री, रमेश दुबे,कुंदन पाराशर,शिखरचंद शिखर, मुकेश तिवारी, एम डी त्रिपाठी, मदनमोहन कटारे, प्रभात कटारे, पुष्पेंद्र दुबे, बृजमोहन दुबे, डॉ ओ पी चौबे, हरी शुक्ला, सतीश पांडे, डॉ. प्रिंस पांडे, गोपाल पालीवाल, दामोदर अग्निहोत्री, देवी सिंह राजपूत, अबरार अहमद, असरार अहमद,एम. शरीफ, राहुल पाठक, अम्बर चतुर्वेदी,
लक्ष्मीकान्त गोस्वामी, अमित आठिया,पवन केसरवानी, मधुर गोस्वामी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।