नारी है इस जग की मूल… (कविता-3)
नारी है इस जग की मूल रे नर! दे न इनको शूल….. त्याग, समर्पण, सेवा धर्म करती यह तन्मय हो कर्म रखती हरदम सबका मान घर, आंगन की इनसे शान झोंक न खुद आँखो में धूल रे नर! दे न इनको शूल…. दिव्य गुणों से यह परिपूर्ण करती विपदाओं…