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ग्लानि

सानिया अपनी बेटी की पढ़ाई को लेकर बहुत ही सजग रहती। छोटी सी जान उसके पीछे पड़ी ही रहती सानिया। 12 वर्षीय अनिका सारे दिन किताबों में घिरी रहती। ट्यूशन में अगर टीचर छुट्टी कर लेती तो बबाल मचा देती सानिया।

काम वाली बाई का भी एक-एक दिन का हिसाब गिन कर रखती क्योंकि सुघण गृहणी जो थी। सभी का लेखा-जोखा रखती।

एक दिन ट्यूशन टीचर कहीं घूमने गई थी इसलिए 3 दिन की छुट्टी लगातार हो गई। सानिया का पारा आसमान को छू रहा था। फोन मिलाकर ट्यूशन टीचर को सुनाने ही वाली थी। घर में बढ़-बढ़ाती फिर रही थी। फ्री का पैसा थोड़ी आ रहा है। जो इतनी छुट्टी करेंगे।

छोटी सी अनिका अपनी मम्मी को देख कर सहम जाती।

अनिका अपनी दादी से कहती है,”दादी स्कूल में तो इतनी छुट्टी होती हैं फिर भी कोई हिसाब नहीं लेता है। हर चीज की फीस समय से जमा की जाती है। मेरी ट्यूशन टीचर या डांस टीचर जरा छुट्टी कर लेती हैं तो मम्मी पूरा घर सर पर उठा देती हैं। कभी-कभी स्कूल में पढ़ाई भी नहीं चलती है वहां तो कोई नहीं पूछता कि क्या हुआ? फिर यहां पर मम्मी इतनी गुस्सा क्यों हो जाती हैं?

दादी उसकी बात को सुनकर चकित रह जाती हैं। क्योंकि छोटी सी अनिका बात तो सही कर रही थी। सानिया भी दादी पोती की बात सुन लेती है और उसे खुद पर ग्लानि महसूस होती है।

 क्यों हम समर्थ को दबा नहीं पाते हैं और जो हमसे कमजोर हैं उनके पीछे पड़े रहते हैं। बात सच ही तो है‌।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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