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धीरे – धीरे हम भारतीय संस्कृति को स्वयं नष्ट करते जा रहे..!

ग्रामीण क्षेत्रों में माहौल बदल रहा और अब आधुनिकता के नाम पर जो कुसंस्कृति कभी शहरों की पहचान मानी जाती थी अब गांवों में पैर पसार चुकी है । आधुनिकता के नाम पर जमकर अश्लिलिता परोसी जा रही और इसका लुत्फ घर के सभी सदस्य उठा रहें । अगर बात करें शादी विवाह में बढ़ते रस्मों की तो पहले टीवी सीरियलों में शादी पूर्व कई समारोह दिखाए जाते थे जिसे पहले शहरों ने अपनाया जैसे हल्दी मेंहदी इत्यादि फिर अब गांवों ने भी इस अतिरिक्त इवेंट को सहर्ष अपना लिया । क्या आप जानते हैं कि ये अतिरिक्त इवेंट अत्यधिक खर्चीले तो है ही बल्कि समय के साथ भारतीय संस्कृति को भी निगल रहे । आज कल ग्रामीण परिवेश में होने वाली शादियों में नई रस्म का जन्म हुआ है वह है  हल्दी रस्म जिसके  दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन किया जाता है, उस दिन दूल्हा या दुल्हन व पूरा परिवार, रिश्तेदार विशेष पीत (पीले) वस्त्र धारण करते हैं। साल दो साल पूर्व इस हल्दी रस्म का प्रचलन यूपी बिहार हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में तो ना के बराबर था लेकिन पिछले  दो तीन  साल में एकता कपूर के धारावाहिकों के कारण  इसका प्रचलन बढ़ा है।पुराने समय में  जरूर दूल्हे दुल्हन के चेहरे व शरीर की मृत त्वचा हटाने, मुलायम करने व चेहरे को गोरा और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटे, दूध आदि का उबटन बनाकर शरीर पर लगाया जाता था। पुराने समय में ना तो आज की तरह साबुन व शैम्पू थे ना ही ब्यूटी पार्लर। हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे दुल्हन को गोरा किया जाता था। वो रस्म साधारण तरीके से शादी वाले दिन ज़रूर निभाई जाती रही है।  बुजुर्ग तो कहते है कि नाडी पर भेड़ों को धुलाने के लिए मिट्टी का बाथ टब बनाया जाता था भेड़ों को धोने के बाद उसके पानी से दूल्हे को उससे नहाया जाता था जिससे दूल्हे के रंग में निखार आ जाता था। लेकिन आजकल की हल्दी रस्म बहुत आत्धुनिक  हो गई है जिसमें दूल्हे या दुल्हन का तो अता पता नहीं पर अश्लील भोजपुरी गानों पर पीले वस्त्र पहनकर कूदते आपको बिगड़ती भारतीय संस्कृति जरूर दिख जायेगी  जिसमें हजारों रूपये खर्च कर डेकोरेशन किया जाता है और  महंगे पीले वस्त्र पहने अश्लील भोजपुरी गानों पर पूरा परिवार नाचते देखे जा सकते है ।

             धनाढ्य समाज के लिए ऐसे रीति रिवाज अफोर्डेबल है पर आजकल देखने में आ रहा है कि आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के भी इस लोक दिखावा में शामिल होकर परिवार को कर्ज के बोझ में धकेल रहे है। क्योंकि उन्हें अपने छुट भईए नेताओं, चवन्नी छाप दोस्तों को अपना ठरका दिखाना होता है। फोटो शूट वीडियो सूट , फेसबुक, आदि के लिए रील बनानी होती है।  बेटे बिटिया के रील बनाते बनाते बाप बिचारा रेल बन जाता है। ऐसे ऐसे घरों में फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिन घरों में घर के नाम पर छप्पर है, घर की किवाड़ी नहीं है, बाप ने पसीने की पाई पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया तो छत नहीं है, छत है तो प्लास्टर नहीं, प्लास्टर है तो दरवाजा नहीं है, बाप के पहनने के चप्पल नहीं है मां के ओढ़ने के लिए ढंग की चुनरी नहीं है लेकिन 10 वीं 12 वीं मरते डूबते पास करने वाले छिछोरे मां बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा जरूर करते हैं।  ऐसे लड़के 1 रुपए की मजदूरी करना नहीं चाहते और सूखे दिखावे के चक्कर में मां बाप को कर्ज में धकेल देते हैं। ऐसे लड़कों के सैकड़ों ऐसे ही लूखे दोस्त होते हैं जिन्हें ये लोग प्यार से  ब्रो कहते है। शादी विवाह में अपना स्टेटस बनाने के लिए जिसको ढंग से जानते भी नहीं उन्हें भी शादी में इन्वाइट करेंगे। किसी से सिफारिश लगाकर प्रधान, विधायक और नेताओं को बुलाते हैं ताकि गांव में इनका ठरका जमे। बहुत सारी गाडियां घर के आगे खड़ी देखने की उत्कंठा रखते हैं। किसी को बुलाए कोई आपत्ति नहीं लेकिन उन बड़े लोगों के साथ फोटो सेल्फी लेने में और उनके आगे पीछे घूमने में इतने मशगूल हो जाते है कि घर आए जीजा, फूफा, नाना, नानी, बहन , बुआ अड़ोसी पड़ोसी को चाय पानी का भी पूछना उचित नहीं समझते। अपने रिश्तेदारों की इस तरह की नाकद्री ठीक नहीं है। जरूरत पड़ने पर यही लोग सबसे आगे खड़े होते हैं जिन्हें आप हाशिए पर धकेल देते हो।अन्य बहुत सारी फिजूलखर्ची जैसे डीजे बुक करवाना, लाइट डेकोरेशन करना, वीडियो शूट व ड्रोन कैमरा मंगाना, 5- 7 जोड़ी ड्रेस मंगवाना, 3-4 साफे ,शेरवानी, घोड़ी, पाइप पांडाल, स्टेज, पटाखे , एक वो झाग वाला डबिया । जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बेटे मां – बाप से कहते है आप कुछ नहीं समझते।

मैं जब भी यह सुनता हूं पांवों के नीचे जमीन खिसक जाती हैं। बड़ी चिंता होती हैं कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है ?

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर

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