वर्ष 2021 गुजर चुका है।समस्याओं और उपलब्धियों से यह लर्षभरा रहा ,ऐसा कहने में हमें संकोच नहीं होता. इसलिए कि समस्याओं ने राष्ट्र को अगर परेशान किया तो उनके समाधान भी देश ने ढूँढ लिए । कोरोना से जूझने के लिए टीकाकरण अभियान ने सामान्य जनता को सामान्य जीवनशैली की ओर उन्मुख कर दिया।यद्यपि इतनी शीघ्रता की आवश्यकता तो नहीं थी पर सामान्य जनता अगर मन से भय निकालना चाहती है तो मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह एक अच्छा संकेत है। किन्तु जनता को अभी कोरोना से सम्बन्धित सावधानियाँ बरतनी ही चाहिएक्यों कि अफ्रिका से चलकर एक नये वैरिएंट ओमिक्रान ने भी शेष विश्व में दस्तक दे दी है। अत्यधिक शीघ्रता से संक्रमण करने वाला यह वैरिएंट भारत में भी प्रवेश कर चुका है और देश की सामान्य होती साँ सों को पुनः उद्वेलित करने पर आमादा है। पुनः एक बार स्थान स्थान पर लॉक डाऊन और कर्फ्यू का सिलसिला और प्रभावित राज्यों में पुनःचिकित्सकीय सतर्कता पर सरकारों का बढ़ता हुआ ध्यान भूलती जाती हुई सारी बंदिशों का पुनर्स्मरण करा रहा है। यह अलग बात है कि ओमिक्रॉन का प्रभाव बहुत खतरनाक सिद्ध नहीं हो रहा हैऔर हमारी आशा के अनुसार सम्भवतः कोरोना के रूप बदलते आक्रमणकारी स्वरूपों की यह अन्तिम कड़ी हो।
हम समझने की कोशिशकरते हैं किअफ्रिका में जन्म लेनेवाला कोई भी वैरिएँट यू के में इतनी तेजी से फलने और फैलने क्यों लगते हैं? तत्सम्बन्धित प्रथम मृत्यु भी वही ं हुई।,एक अति सभ्य स्वच्छ और समुन्नत कहलाने वाले राष्ट्र का ऐसेनसंक्रामक रोगों मे तुरतही फँस जाना उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी का ही आभास कराता है। हम भारतीय मूल रूप से धरती की धूल में लोटपोटएवं खेलकर इस सदी में पहुँचे हैं। प्राकृतिक औषधियों की शक्ति को पहचाना है और सर्वप्रथम उसीकी शरण में जा कर आरोग्य लाभ भी प्राप्त किया है । हमारी इम्यूनिटी ने ही हमें इस महानारी से लड़ने की विशेष क्षमता दी है। भविष्य में भी इसे विकसित कर महामारी को पराजित करने मेंहम अवश्यसमर्थ होंगे ,ऐसा विश्वास है। टीकाकरण ने इसमे बहुत सहायता की है।
यह रोग जबतक सम्पूर्णतःसमाप्त नहीं हो जाता, विश्व को चैन नहीं है।सबसे अधिक दुष्प्रभाव शिक्षा पर पड़ा है। शिक्षा जो विकास की प्रथम सीढ़ी है , व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास का जरिया है ,कोरोना ने सबसे अधिक प्रभाव उसी पर डाला।विद्यालयों का छोटे छोटे बच्चों के लिए बन्द हो जाना, उनके आरंभिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ अच्छा नहीं रहा।बात कुछ अजीब सी लगती है कि मॉल होटलों, शादी विवाह जन्य उत्सवों में वे खुले दिल से शामिल हो रहे हों तो फिर विद्यालय से ही वे वंचित क्यों हैं। अब जब कोरोना की तीसरी लहर डेल्टा और ओमिक्रोन की पुनः जोर मारने लगी है तो सुरक्षा की दृष्टि से कुछ िन और विद्यालयों से दूर रहना ही होगा।यह एक अभिशापित स्थिति प्रतीत होती है। पर यह स्थिति शीघ्र ही समाप्त होगी, ऐसी आशा हम कर सकते हैं।
बीते वर्ष की प्रगतिमें सबसे बड़ी बाधा उत्पन्नकी थी किसानों के आन्दोलन ने। बड़े बड़े दलों का समर्थन लेकर एक अच्छे भले कानूनों के विरोध में पाली हुई एक जिद ने केन्द्र सरकार को गहरी चिन्ता में डाल दिया था । लम्बी अवधि तक आन्दोलन का चलना देश के राजनीतिक स्वास्थ्य परगलत प्रभाव डाल रहा था।जनमानस में एक सार्थक भ्रम भी पल रहा था। पर सरकार अप्रत्याशित रूप से तीनों कानून को वापस करते हुए उन तमाम विरोधी स्वरों को चुप करा दिया जो इसे और लम्बा खींचते हुए चुनावों का बड़ा मुद्दा बनाना चाह रहे थे।समस्या का समाधान हुआ ,पर कुछ विलंब से।पर यही उचित भी था। विकास से जुड़े किसी सुधारवादी कानून को अल्प विरोध में ही वापस कर लेना विधायिका की बड़ी कमजोरी मानी जाती।
अब इस देश की रीति नीति कैसी हो, यह एक विचारणीय प्रश्न है।विकास के कुछ मुद्दे हमारे अध्यात्मिक स्वरूपों से जुड़े हैंराम जन्मभूमि मथुरा और काशी हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर हैं इने वास्तविक स्वरूों की रक्षा करना औरसदियों की विदेशी जकड़न अथवा कैद सेमुक्त करना देश की सास्कृतिक और अध्यात्मिक स्वरूप के पुनरुद्धार का प्रयत्न करना ,हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।ये वे उपासना स्थल हैं जिनसे दे श को ऊर्जा मिलती है। इस दिशामें किए गये प्रयत्नों का स्वगत अवश्य करना चाहिए पर असके फल्वरूप किसीप्रकार की सामाजिक कटुता का जन्म न हो इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है।आज विश्व जिस मानवता का राग अलापते नहीं थकता , वह भारतभूमि के कण कण मे बसी भावना है। देश ने जिसका संदेश आदिकाल से अपने अध्यात्मिक नेताओं द्वारा विश्व को दिया है। इस कोरोना काल में भी अपने प्रयत्नों से विश्व की मदद कर अपनी इस सोच को उसने को प्रदर्शित किया है।
चुनाव समीप आते ही मुद्दाहीनता के खाली मस्तिष्क से नवीन मुद्दे जन्मले लेते हैं। वस्तुतः यह हमारे भारतीय समाज को तोड़ने के प्रयत्न कहे जा सकते है। यह लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया का अभिशाप ही कहा जायगा ,जिसके द्वारा विभिन्न दल एक दूसरे की अच्छी भली उपलधियों के प्रति भी जनता के मन में अस्वीकृति भरने की कोशिश करते हैं । समाज में फैली अच्छी भली सद्भावना और सौहार्द को भी नष्ट करने की कोशिश करते हैं। सालों भर चलने वाले चुनाव मा त्र एक दूसरे के प्रति विष वमन के कारण स्वरूप ही जाने जा सकते हैं। एक विचाणीय प्रश्न हिन्दु और हिन्दुत्व का उठाया जा रहा है। हिन्दु से हिन्दुत्व को अलग करने का प्रयत्न शरीर से आत्मा को अलग करने के प्रयास के समान है।हिन्दु को धर्म मानते हुए उसके कर्मकांडों को हिन्दुत्व की संज्ञा देनेवालों को यह सोचना चाहिए कि विभिन्न देवताओं में उसकी आस्था, और निष्ठा ध्यानयोग का साधन है,और सम्पूर्ण भारत के लोगों में पवित्र भावनाओं कोभरने का माध्यम और चित्त शुद्धि का जरिया है, वैसी ही भूमिका य़ोग हवनादि की भी है।जिस गो पूजा और गो-निष्ठा पर उनकी ऊँगलिया उठती हैं वस्तुतः आदिकाल से मानवता की रक्षा में उसकी उपयोगिता सिद्ध है। आज जो दूध दही , घी गोबर एवं इसके अनगिनत उत्पाद हमारे दैनिक जीवन के हितकर अंग सिद्ध हो रहे हैं ,वह गाय को स्वयमेव पूज्य बनाते हैं। उनकी उपयोगिता मात्र धार्मिक और अध्यात्मिक ही नहीं, व्यावसायिक भी है, फिर उसकी रक्षी क्यों नकी जाए।
वस्तुतः हिन्दू भारत का हर निवासी है, और हिन्दुत्व उसके अन्दर निहित उदारता सहअस्तित्व ,मानव जाति के लिए प्रेम की वह भावना हैजिसने इस देश में मिली जुली संस्कृति विकसित की है। जिसने देव और दानव दोनों ही प्रकृतियों के लोगों को आश्रय दिया है और मानवता के बीज बोए हैं।
हिन्दुत्व एक व्यंग्यात्मक शब्द तो कदापि नहीं सकता। अगर किसी में हिन्दुत्व नहीं तोतो उसमें मानवत्व नहीं।भारत के सभी देवी देवताओं ने जिस अध्यात्मिकता को जन्म दिया है, वस्तुतः वही हिन्दुत्व है।गीता नेने जो संदेश दिया है वही हिन्दुत्व है। वेदान्त ने जिस विश्वास का प्रतिपादन किया है वही हिन्दुत्वहै। हिन्दु से हिन्दुत्व को पृथक करना एक वैचारिक नटखटपन है।
भरत में अपने आत्मिक सौन्दर्य , भव्यता की रक्षा का नया संकल्प जाग्रत हुआ है। इस ओरबढने के लिए भारत हर क्षेत्र में नयी उर्जा तलाश रहा है।
भारत को अपनी आत्मा की तलाश है। भारत एक अध्यात्म है,भारत एक मर्यादा है,भारत एक शौर्य और पराक्रम है,भारत विश्वगुरु है ।अगर भारत के इस स्वरूप को जीवित रखना है तो हर क्षेत्र में मर्यादा का पालन इसे करना ही होगा।संस्थाएँ धार्मिक हों, राजनीतिक अथवा सामाजिक ,सबकी मर्यादाएँ होती है,। मर्यादाएँ बन्धन नहीं होतीं वे सुचारुता की गारंटी होती हैं। नियमबद्धता इमानदारी और नैतिकता के द्वार खोलती है।एक लोकतांत्रित राष्ट्र में इसकी अधिक आवश्यकता है अन्यथा देश की सभी संस्थाएँ भगदड़ की केन्द्र बन जाएँगी।पिछले दिनों विधान पालिका में अमर्यादित व्यवहारों का प्रदर्शन अवश्य ही देश के मर्यादित स्वरूप का हनन करता हुआ लगा।दण्ड का प्रावधान किया गया। भविष्य में इसका ध्यान रखा जाना आवश्यक ही है।
हमे देश के लिए नयी ऊर्जा की तलाश है। यह ऊर्जा इसे अपने देशवासियों से ही मिलेगी। हमारा रक्षातंत्र विकसित हो, हमारी राजनैतिक दृष्टि पैनीहो. हम अपने प्रयत्नों से देश को समृद्ध करें , हम आतंकमुक्त हों और पूर्ण आत्मिक स्वाधीनता को प्राप्त करें ,विश्व में भारत पुनः विश्वगुरु बनता दिखे, अतः हर क्षेत्र में हमें नयी ऊर्जा की तलाश है।
आशा सहाय।