साठ वर्ष से ऊपर के हो गए तो क्या हुआ!अपने को बूढ़ा तो नहीं समझते न!समझना भी नहीं है। क्या कहा-लोग कहते हैं, लोगों की परवाह मत करो,लोगों का काम है कहना।अरे!रिटायर्ड ही तो हुए हो,टायर्ड तो नहीं।टायर्ड होना भी नहीं है,जो काम स्वयं कर सकते हो,वह स्वयं करना ही है।बार बार पत्नी को हर छोटे बड़े काम के लिये मत कहते रहो।दो तीन साल बाद उसने भी साठ से ऊपर का हो जाना है।हर हाल में शरीर को तोदोनों को चलायमान रखना ही है,इस हाल मेंतो सन्तान फिर भी कभी कभार पूछ लेगी,असहायके लिये तो घर में एक बस कोना ही रह जाता हैऔर अतीत का सिमरन, वर्तमान का रुदन,भविष्य का निरर्थक चिंतन।अतःप्रभु भजन में मस्त रह बस यही प्रार्थना करो कि इस संसार से विदाई चलते फिरते ही हो।
आज के समय में अपेक्षामत रखो,उपेक्षा का भानही नहीं होगा।आप ने अपने फर्ज़ पूरे किये, उनको उनके फर्ज़ पूरे करने दो!आखिर तुम किसी से कम हो क्या?अरे!भई, भूतपूर्व नौजवान हो,नौजवान, आज भी वैसे ही जोश सेभरे रहना है, बिस्तर पर बैठ गए तो ये लोग तुम्हें लिटा देंगे,नये नयेप्रलोभन से तुम्हें लुभा,नज़र तुम्हारी धन-दौलत व सम्पत्ति पर रखेंगें औरउनका मन्तव्य पूरा होने पर तुम दोनों कुछ दिन बहुत ही अच्छा महसूस करोगे बाद में मनहूस बन कर रह ही जाओगे।ऐसासब जगह नहीं है, कुछ अपवाद भी है, यही अपवाद ही तो आपसी प्रेम- प्यार सद्भाव, समझसामंजस्य,समन्वय से भरे पारिवारिक सौंदर्य कोएक नया रूप देते हैं औरसम्भवनाओं के आकाशको,जहाँ परवाह है,वहीं ही परिवार है,की मधुरभावनाओं से परिपूर्ण करदेते हैं।
जरूरी नहीं हमेशा बुरे कर्मो की वजह से ही दर्दसहने को मिले,कई बार हद से ज्यादा,अच्छे होने की कीमत चुकानी पड़तीहै,इसका अर्थ यह नहीं कि हम भी बुरे हो जायें,नहीं,कदापि नहीं,अच्छाईका दामन कभी नहीं छोड़ना,सत्य व अच्छाई का सूरज भले ही कुछ देर के लिये बादलों से ढक जाये,पर बादल छंटते ही दैदीप्यमान होकर फिर अपनी चमक बिखेरेगा ही। यह सब कुछ तुम्हारे मन के ही विश्वास व दृढ़ निश्चय परनिर्भर है,इसे टूटने नहीं देना है,डिगने नही देना है, यही अमिट सत्य है ,यही सच्चाई है कि प्रिय जीवनसंगिनी के साथ मिल कर तुम एक और एक दो नहीं, ग्यारह हो। जीवन की इस सच्चाई को गहरे से समझ लो किबच्चे वसीयत पूछते हैं, रिश्ते हैसियत पूछते हैं वदोस्त खैरियत पूछते हैं,आज तुम्हारे हमउम्र दोस्तों में से अधिकांश की हालत तुम्हारे जैसी ही है, उन्हीं में से ऐसे दोस्त ढूंढ लो जो दोस्ती का मतलब न पूंछे क्योंकि जहाँ दोस्ती है, वहां मतलब कहां हैं।
सर्विस से या व्यापार से रिटायर्ड को हर सूरत में अपने पास एक पर्याप्त सुरक्षित निधि रखनी ही चाहिए, जिसके ब्याज से वह सुखद जीवन जी सके।बहुत इमरजेंसी में सुरक्षित निधि ही सहारा होती है।पेंशन की राशि तो रोजमर्रा के खर्च में लग जाती है।निजी क्षेत्रमें तो पेंशन है ही नहीं, कुछ सरकारी उपक्रमों व प्राइवेट फैक्टरियों में पेंशन बहुत ही कम है। फण्ड व ग्रेच्यूटी ही सहारा होती है।भावुकता या आवेश में कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए।
रोज़गार के सिलसिले में सन्तान अधिकतर परिवार सहित बाहर ही चली जाती हैं।एकाकी जीवन तो बुढ़ापे का ही पर्याय बन गया है। सन्तान साथ भी हो तो आजकल बच्चों,पत्नी व उसके परिवार में वो इतने मशगूल होते हैं,स्वयं के माँ बाप तो उपेक्षित सा महसूस करते हैं। अतः सेवानिवृत्ति से पहले व बाद में तन को स्वस्थ तथा निरोग रखना है, तभी आप लम्बे समय तक सक्रिय रह पाएंगे। जो शौक व अभिरुचियाँ तब व्यस्त रूटीन के कारण नहीं कर पाये, उनको पूरा करने का यह स्वर्णिम अवसर है,समाजसेवा व धार्मिक कार्यो में भी स्वयं को व्यस्त रखा जा सकता है।
सेवानिवृत्ति के बाद जीवनसाथी का आपस मेंमधुर व्यवहार, सामंजस्य का होना,जीवन को सरल आनंदमय व उज्ज्वल बना देता है।पर एक परिस्थिति और भी विकट आती है, जब जीवनसाथी में से एक चला जाता है, तो बच्चों पर निर्भरता बहुधा अवसाद का कारण बन जाती है, ऐसे में स्वयं का मानसिक वशारीरिक रूप से ठीक रहना बहुत जरूरी हैहर हालत में,हर हालात मेंस्वयं को यह एहसास कराना होगा–” याद रहे,तुम बूढ़े नहीं हो,भूतपूर्व नौजवान हो।स्वयं को हर हालात मेंढालना,तुम्हारी पहचान हो।।सच में ये जीवन तो है,सतरंगी फूलों की माला।मस्त,व्यस्त रह सजाते रहो, नित नई मस्ती कीपाठशाला।।
-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकारसेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरियाणा)मो०9034365672