कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
बहुत तेज धूप है, सूरज तप रहा है और धरती जल रही है । गर्मी तो हर साल आती है और मई के महिने में धूप भी बहुत तेज होती है, पर इतनी तेज धूप नहीं रही अभी तक शायद ! ऐसा बोला जा सकता है । धूप तेज है तो एक ही उपाय धूप में न निकला करो । पर निकलना ही पड़ेगा । देष में चुनाव भी चल रहे हैं और बहुत कुछ भी चल रहा है । मौसम के प्रभाव से राजमर्रा के कामकाज थोड़ी न रूक जाते हैं । यदि धूप में न निकला करो कह दिया तो बेचारे नेताजी की चुनावी सभा में कौन पहुंचेगा । वे किसे अपना घिसापिटा रिकार्ड सुनायेंगें । दो महिने के चुनाव हैं और हर रोज चार-पांच सभाऐं हो रहीं हैं तो नए-नए विषय और नए-नए शब्द कहां से लायेगें । सो वहीं घिसपिटा हर जगह चल रहा है । पहले तो अंत्याक्षरी चली कुछ दिन तक । एक ने जो बोला उसके अंतिम अक्षर से दूसरे ने बोलना प्रारंभ कर दिया । पर यह अंत्याक्षरी भी कब तक चलती । अंत्याक्षरी में जो हारने लगता है वह कुछ भी बोलकर अपनी क्षेंप मिटाने की कोषिष करता है । बस यहीं से शुरू होती है चुनावी सभा की बारिकियां । सुनने वाले भी बोर हो चुके होते हैं तो वे भी चाहते हैं कुछ नया बोला जाए । बोलने वाला भी बोर हो चुका होता है तो वह भी चाहता है कुछ नया बोलें तो जो बोला जा रहा है वह चिढ़चिढ़ा कर बोला जा रहा है । शब्द भी तप कर निकल रहे हैं और उम्मीद है कि जिस को भी लग रहे होगें उसे भी जलन कर ही रहे होगें । चुनावी भाषण अब अर्मायदित स्थिति तक पहुंच चुके हैं । शब्दों को लगाम नहीं लगाई जा सकती पर शब्दों पर नियंत्रण किया जा सकता है जो नहीं किया जा रहा है । तेज गर्मी के कारण बोलने वाला भी झुझरलाया हुआ सा है और सभा में ‘‘धूप में न निकला करो’’ के बाबजूद बैठा जनसमूह गर्मी से पसीने से नहाता हुआ भाषण खत्म होने का इंतजार करता रहता है । भाषण जल्दी खत्म हो जाए वह इस संभावना पर ताली बजाता है और बोलने वाला यह सोचकर की हमारी बातें जनसमुदाय को अच्छी लगीं भाषण लंबा कर देता है । चुनाव अंतिम दौर में हैं । यदि गर्मी नहीं होती तो इन चुनावों को इंज्वाय किया जाता हर एक बात पर ताली बजाई जाती पर गर्मी है और ऐसे में न मन लगता है और न तन हिलने की कोषिष करता है ऊपर से वे जोर-जोर से कह ही देते हैं ‘‘धूप में मत निकलो’’ । अब तो निकल गए । जब तक धूप है तब तक चुनाव हैं । चुनाव खत्म रिजल्ट के बाद चुनाव का गणित भी खत्म । कौन कितनी सीटें लेकर आयेगा सब अपनी अपनी बातें कर रहे हैं । सबके अपने गणित हैं और सबके अपने अनुमान हैं । वोट देने भी मतदाता ‘‘धूप में निकला न करो’’ की सीख के हिसाब से ही चला । मतदान कम हुआ । कितना ही समझा लो ‘‘भैया मतदान जरूर करना’’ पर वे नहीं माने ‘‘अब जा गर्मी में कौन निकले’’ । फिर चिल्लायेगें ‘‘फलां पार्टी अच्छा काम नहीं कर रही है’’ अरे आपने तो मतदान किया ही नहीं है । गर्मी से ज्यादा जरूरी तो मतदान करना होता है । हम अपने बाकी काम भी करते हैं कि नहीं तो मतदान क्यों नहीं । पर इन्हें नहीं समझाया जा सका । कम मतदान किसको फायदा पहुंचा गया गणित इसका भी लगा । नेता एसी में और मतदाता कपड़े के टेन्ट के अंदर पसीना झलकाता हुआ सुनता रहा ‘‘धूप में मत निकलो’’ । हर एक नेता को अपनी जनसभा में बड़ी संख्या में श्रोता चाहिए । श्रोता कोई भी हो बस आ भर जाए । श्रोता समझ चुके हें कि उन्हें चुनावी सभा में जाना ही होगा । वे कफन सिर पर बांध कर जाते भी हैं । नेता खुष, उन्हें इकट्ठा करने वाला खुष और जो लोग आए वे भी खुष ‘‘चलो इस बहाने पुराने साथियों से मुलाकात हो गई ‘‘काय भाई बहुत दिनों बाद दिखे….और ठीक चल रहा है’’ । वे एक दूसरे के हालचाल पूछने में ही लगे रहे तब तक नेताजी बहुत सारा बोल-बाल कर फुश्र्र हो गए । केजरीवाल जी को भी चुनाव प्रचार के लिए ही जेल से छुट्टी मिली है । वे आ गए बाहर और लग गए प्रचार में पर उनके घर एक कांड हो गया । उनकी ही पार्टी की राजसभा सांसद स्वती मालीवाल के साथ उनके ही निवास पर मारपीट हो गई ? केजरीवाल जी आसमान से गिरे और खजूर में अटक गए । ऐसा उनके साथ अक्सर होता है । े जाने कौन सी दषा में राजनीति मेंं आए हैं । राजनीति की डगर दूर से देखने में बहुत बेहतरीन लगती है ‘‘जा में का धरो है भाषण दो तालियां बजवाओ और लालीपाप देकर वोट डलवा लो फिर मजे से कुर्सी पर बैठो’’ । जो सत्ता की कुर्सी में बैठ होता है वो जानता है कि इस कुर्सी के कांटे ऐसी ऐसी जगह चुभते हैं जहां की कल्पना भी नहीं की जा सकती । केजरीवाल जी को अब समझ में आ रहा होगा कि वे अपनी अच्छी भली नौकरी छोड़कर कहां की उलझन में फंस गए । राजनीति में तो उनकी खांसी तक शोध का विषय बन चुकी है । वे सुबह ठंडे में घर से निकलते हैं और भर दोपहरी तक केवल यह ही सफाई देते रहते हैं कि उन्होने ऐसा कुछ नहीं किया । आम व्यक्ति ‘‘कुछ तो हुआ होगा….वरना आरोप ऐसे ही नहीं लगते’’ के हिसाब से सोच लेता है । स्वाती मालीवाल उनकी लेडी सिंघम थीं अब वे केजरीवाल एंड कंपनी से भयभीत हैं । केजरीवाल के शक्तिमान पीए पर उनकी पिटाई करने का आरोप है वे जेल में बंद हैं और स्वीतामालीवाल गुहार लगा रहीं हें ‘‘हुजूर इन्हें जमानत मत दीजिए’’ । वक्त कैसे बदल जाता है और वक्त के साथ रिष्ते भी कैसे बदल जाते हैं । केजरीवाल जेल होकर आ गए, अभी उनको फिर से जेल ही जाना है, उनके साथी अभी भी जेल में हैं भविष्य का कोई परिदृष्य दिखाई नहीं दे रहा है, दिल्ली विधानसभा के चुनाव में क्या बाजी पल्टेगी इसका गणित लगाया जा रहा है । क्या इसके लिए ही राजनीति में आए हैं वे । उनके गुरू अन्ना हजारे भी उन पर व्यंग्य कस रहे हैं । कोई उन्हें दूध का धुला नहीं मान रहा है ‘‘भैया राजनीति इतनी सहज और सरल है कहां’’ । वे तो तपे-तपाए लोग होते हैं जो हर कहर को झेल लेते हैं । धूप में निकला न करो’’ की समझाइस भी ऐसी ही है कासेई कितना समझा ले पर लोग हें कि धूप में निकल ही जाते हैं फिर अपना चेहरा काला करा लिते हैं । गुजरात में एक गेमिंग सेन्टर में आग लग गई 28 बेकसूर लोग कालकवलित हो गए । गेमिंग सेन्टर चलाने वाले के पास तो प्रतिदिन लाखों रूप्या आ रहा था । जब पैसा आता है तो व्यक्ति बाकी सारी चीजें भूल जाता है । उसे ध्यान ही नहीं रहा कि इस सेन्टर को आग के संभावित खतरे से बचाने के लिए उपाय करने चाहिए । बेचारो मासूम बच्चे इस अग्नि कांड की चपेट में आ गए । दिल्ली में भी ऐसी ही अग्नि दुर्घटना हुई और वहां भी मासूम बच्चे इसके षिकार हुए । शासन और प्रषासन की लापरवाही दोनो घटनाओं में देखने को मिली । प्रषासन कभी सजग नहीं रहता वह हर बार घटना के बाद अपने सजग रहने को दर्षाता है फिर वह ‘धूप में न निका करो’’ के बातों को मानकर एसी में सुस्ताने बैठ जाता है । अधिकारी दिन की चहल-पहल में विश्राम कर रहे होते हैं और आम आदमी उनकी नाइंसाफियों की सजा भुगत रहा होता है । पूणे के रोड एक्सीडेन्ट के केस में भी यहीं हुआ । दो जाने चलीं गई और जिसने जान ली उसे नाबालिग बताकर निंबंध लिखने की सजा सुना दी गई । वो तो सोषल मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम को बाहर ,ख्ींच लिया वरना वो तो पैसों के बल पर अपने घर में आराम कर रहे होते । सच्ची में पैसों में बहुत ताकत होती है ब्लड सैंपल तक बदल दिया जाता है । अब जब एक एक कर सारी बातें बाहर आ रहीं हैं तब हैरत भी हो रही है और अफसोस भी ।