विश्व तंबाकू निषेध दिवसपर विशेष
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तंबाकू के इतिहास की बात करे तो सन 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने पहली बार सैन साल्वाडोर द्वीप पर तंबाकू की खोज की थी। और अपनी दूसरी यात्रा के दैरान स्पेन में तंबाकू के पते लेकर आए। सन1558 में तंबाकू के बीज पूरे यूरोप महाद्वीप में फैल गए और उपनिवेशवादियों के आक्रमण के साथ धीरे –धीरे यह सारी दुनिया में फैल गई ।
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लाल बिहारी लाल
सन 1988 से 31 मई को दुनिया भर में हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य तंबाकू सेवन के व्यापक प्रसार से नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर आम जन का ध्यान आकर्षित करना और इसके दुष्प्रभावो से जीवों को बचाना है, जो वर्तमान में दुनिया भर में हर साल 70 लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है, जिनमें से 8,90,000 गैर-धूम्रपान करने वालों का परिणाम दूसरे नंबर पर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने सबसे पहले 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाने को सोंचा औऱ सनं 1988 से लगातार मनाते आ रहे है। पिछले तीन दसक से दुनिया भर में इसके पक्ष औऱ विपक्ष दोनों तरफ के लोग खड़े मिले है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 7 अप्रैल 1988 को एक संकल्प पारित किया जिसके तहत 24 घंटे दुनिया को तंबाकू पर रोक लगाने का आह्वाहन किया गया जिससे इसे छोड़ने वाले को प्रेरित किया जा सके इसी सोंच का परिणाम निकला कि 31 मई 1988 से हर साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाते आ रहे है।
तंबाकू के इतिहास की बात करे तो सन 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने पहली बार सैन सेल्वाडोर द्वीप पर तंबाकू की खोज की थी। और अपनी दूसरी यात्रा के दैरान स्पेन में तंबाकू के पते लेकर आए। सन1558 में तंबाकू के बीज पूरे यूरोप महाद्वीप में फैल गए और उपनिवेशवादियों के आक्रमण के साथ धीरे –धीरे यह सारी दुनिया में फैल गई ।
वर्ष 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पहल पर तंबाकू निषेध के लिए एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर संधि हुआ। वर्ष 2008 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस की पूर्व संध्या पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की और से एक आह्वाहन सारी दुनिया को की गई की तंबाकू के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई जाये। वही इसे हर साल एक श्लोगन भी दिया जाने लगा बात करे 2017 का तो इस बर्ष का श्लोगन था- ‘विकास के लिए खतरा’ , 2018 का ‘तंबाकू दिल तोड़ता है’। इस साल( 2022) का श्लोगन है- ‘पर्यावरण के लिए खतररनाक है तंबाकू’।
तंबाकू के सेवन से श्वसन तंत्र, हृदय तंत्र, पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, आदि के नुकसान होने के खतरे बढ़ जाते है। तंबाकू के सेवन से 30 प्रतिशत. कैंसर के मरीजों की संख्या है जिसमें लंग्स और मुँह के कैंसर मुख्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल 60 लाख लोग मरते है धूम्रपान जनित रगो से यानी प्रति 6 सेकेंड में एक की मौत होती है। दुनिया में उच्च रक्त चाप के बाद तंबाकू विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हत्यारा है। तंबाकु की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति 35 लाख हेक्टेयर प्रति वर्य़ नष्ट हो जाते है जिसका असर सीधे पर्यावरण पर पड़ता है। तंबाकू उद्योग से हर साल 84 मीट्रिक टन कार्बन डाई आँक्साइड उत्सर्जित होते है जो वारतावरण को दूषित करते है।
भारत में राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2007-08 में 21 राज्यों के 42 जिलो में पायलेट परियोजना के रूप में किया गया। सर्वप्रथम राजस्थान के 2 जिलों जयपुर व झुंझुनू को सम्मिलित कर गतिविधियाँ प्रारम्भ की गयी। वर्ष 2015-16 में जयपुर, झुन्झुनू के अतिरिक्त अजमेर, टॉक, चूरू, उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौडगढ, कोटा, झालावाड, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, अलवर, जैसलमेर, पाली, सिरोही, श्रीगंगानगर जिले (कुल 17 जिले) योजनान्तर्गत सम्मिलित किये गये । आज देश के कोने कोने में इस पर काम हो रहा है। इसका परिणाम भी सकारात्मक मिल रहा रहा है।
आज जरुरी है कि ध्रूम्रपान को न कहा जाये क्योकि इसके परिणाम से कितना जीव और घऱ बर्वाद हो चुके है। स्वास्थ्य एं पर्यावर दोनों जरुरी है इसलिए भारत को आज तंबाकू मुक्त बनाने की जरुरत है।
लेखक- साहित्य टी.वी के संपादक है।