कविता मल्होत्रा (स्थायी स्तंभकार, संरक्षक)
बालक हो या शावक
सबकी पालिका एक
भेदभाव इंसानी कुंठा
प्रकृति का इरादा नेक
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हम सभी अपनी माँ की गोद पर तो अपना स्वामित्व समझने लगते हैं लेकिन उस मातृत्व की गरिमा को बनाए रखने के सब दायित्व नज़रअंदाज़ कर देते हैं।परिवार और समाज से मिलने वाली शिक्षा को हम केवल अक्षर ज्ञान और व्याकरण की शुद्धता समझ कर विद्धा ग्रहण करते हैं और काग़ज़ी मुद्रा कमा कर संपत्तियों के स्वामित्व का अहंकार अपने मस्तिष्क में चढ़ा लेते हैं।जिनके नसीब में विद्यालय के चेहरे देखना भी नहीं लिखा होता, ऐसे लोगों के साथ प्रतिस्पर्धात्मक रवैया अपना कर हम अपने अहंकार को और पोषित करते हैं और भेदभाव के कारण अंजाने में समूची मानवता का वर्गीकरण करने का गुनाह कर बैठते हैं।बस यहीं हमसे चूक हो जाती है।एक सभ्य नागरिक को एक संस्कार वान इंसान होना चाहिए जो सबको समभाव से देखकर सर्व कल्याण की भावना के साथ जन हित के लिए काम करे और मानव जीवन का उद्देश्य पूरा करने के साथ-साथ शाश्वत प्रेम की कमाई से अपना अक्षय पात्र भरे और सृष्टि की निःस्वार्थ सेवा में अर्पित करे।
जिस धरती ने समूचे ब्रह्मांड को बिना किसी भेदभाव के अपने आग़ोश में पनाह दे रखी है उसका स्वरूप कितना व्यापक होगा।हम अपने अधिग्रहण के अंतर्गत आने वाली संपत्तियों को तो क़ीमती सामान से सजाकर लुभावने रूप दे देते हैं लेकिन विराट पृथ्वी के बाक़ी सब हिस्सों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
जल, वायु, ध्वनि, का उचित प्रयोग हो, इन प्राकृतिक तत्वों को जिस पर समूचे ब्रह्मांड के जीवों का अधिकार है, हम किसी भी तरह से प्रदूषित न करें, ये हम सभी की ज़िम्मेदारी है।
पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक रहकर हम समूची सृष्टि के संरक्षण का दायित्व निभा सकते हैं। सहिष्णुता का भाव ही मानवता के दृढ़ संकल्प का आलेख बन सकता है।
अगर हम बाहरी स्वच्छता के साथ-साथ अपनी आंतरिक शुद्धता के लिए भी प्रयासरत रहें तो प्रकृति का ऋण उतारने के काम की शुरुआत हो सकती है।
जिस तरह पॉलीथिन का कचरा मूक पशुओं के गले की फाँस बनकर अटकता है और अनेक बीमारियों का कारण बनकर अंततः उन्हें मौत के मुँह में धकेल देता है।ठीक उसी तरह संबंधों में पॉलिटिक्स का कचरा स्नेहिल वात्सल्य के लिए दीमक का प्रकोप बनकर, मानसिक अवसाद को जन्म देते हुए समूची मानव जाति की शुद्धता को निगल जाता है।
पर्यावरण और वातावरण की शुद्धता केवल एकदिवसीय श्रृंखला का निर्माण नहीं है, न ही केवल किसी चयनित विभाग या संस्था की ज़िम्मेदारी है।ये तो समूची मानव जाति की मानसिकता के रूपांतरण का महायज्ञ है जिसमें सभी को अपने स्वार्थों की आहुति डालनी ही होगी।
वन्य प्राणियों को भी संरक्षित जीवन मिले और हरियाली को भी प्रदूषण रहित वातावरण मिले, ये समूची मानव जाति का समुचित प्रयास होना चाहिए।
किसी एक दिन को या किसी एक विषय को माध्यम बनाकर तो केवल एक प्रस्ताव पारित किया जा सकता है।लेकिन अगर हम जागरूक रहकर अपनी हर धड़कन को मानसिक शुद्धता के हवन में शामिल करेंगे तभी तो समूचे विश्व के कल्याण में अपना योगदान दे पाएँगे।
सृष्टि के सभी जीवों में परस्पर सहयोग का आह्वान होगा तभी तो समूचे ब्रह्मांड का शुद्धीकरण हो पाएगा।
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ये केवल तेरे या मेरे हिस्से का समीकरण नहीं है
जो किसी विशेष फ़ार्मूले से ही सुलझाया जाएगा
न ही ये तेरे-मेरे जीवन की अवधि का हाशिया है
जो किसी राजनीतिक रणनीति से बढ़ाया जाएगा
ये तो मातृभूमि के मातृत्व का वो पावन क़िस्सा है
जो हर युग में मानवीय संवेदनाओं से सजाया जाएगा
रहेगा गुंजायमान समूचे ब्रह्मांड में रूहों का गीत बनकर
जो मानवतावादी संगीत के ज़रिए सदा गुनगुनाया जाएगा
सामूहिक प्रयासों से पर्यावरण की शुद्धता को अंजाम दें
शाश्वत प्रेम ही शुद्धिमंत्र है जो सदियों तक दोहराया जाएगा
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कविता मल्होत्रा