डॉ. वर्षा महेश “गरिमा”
नव वर्ष में, नव हर्ष में
जीवन के हर उत्कर्ष में
हम लिख रहे नव गान सुन।
कभी फर्श पर, कभी अर्श पर
जीवन के हर संघर्ष पर
हम लिख रहे नव गान सुन
कभी धूप में कभी छांव में
उम्मीदों के नए गांव में
हम लिख रहे नव गान सुन।
कभी शूल बन कभी फूल बन
उपवन बना सहरा सा मन
हम लिख रहे नव गान सुन।
कभी रीत में कभी मीत में
ढूंढें अनुग्रह प्रीत में
हम लिख रहे नव गान सुन।