‘‘तेरा क्या होगा कालिया’’ कोई कह नहीं रहा है पर कहता हुआ सा दिखाई दे रहा है । चुनाव चल रहे हैं और चुनाव में ‘‘बोल वचन’’ भी चल रहे हैं और बोल वचनों का अंत ऐसी ही सोच के साथ होता है । आदमी बोलते समय सब कुछ भूल जाता है जो मन में आ जाए बोल दे है और मजे की बात यह कि वह अपने कहे को बदल भी नहीं सकता, हां जरूर कह देता है कि ‘‘मेरे वक्तव्य को तोड़-मड़ोड़ के प्रस्तुत किया गया है’’ । और वो बेचारा कर भी क्या सकता है । अब तो सोषल मीडिया का जमाना है, मोबाइल में भी कैमरा भी लगा होता है और रिकार्डिंग भी होती है, फोटो भी खिंचती हैं और वीडियों भी बन जाता है । इस युग में भी वही घिसा-पिटा डायलाग तोड़-मड़ोड वाला राग अब तो पेट में भी मड़ोड़ तक नहीं पड़ती तो वक्तव्य को कैसे मड़ोड़ा जा सकता है पर अभी कोई नया विकल्प सामने नहीं आया है तो सारे बड़बोले इसी प्राचीन वक्तव्य से काम चला रहे हैं । मंच बहुत खतरनाक होता है । भारी भीड़ जो भले ही क्रय के बल पर आई हो मंचासीन को अत्यधिक उत्साह से भर देती है । यह उत्साह उनकी वाणी में आ जाता है और फिर जुबान कैंची जैसी चलने लगती है । कैंची जैसी चलने वाली जुबान की अंतिम प्रक्रिया ‘‘तेरा क्या होगा कालिया’’ के भावों के साथ खत्म होती है । जिसको सुनाते हैं वह सुन तो लेता है पर कसम खा लेता है कि अब इस कालिया का कुछ तो करना ही होगा । लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं दो चरणों की वोटिंग हो चुकी है जो निपट चुके हैं वे राहत की सांस ले रहे हैं जो निपटने वाले हैं उनकी सांसों की गति बढ़ चुकी है और जो निपटेगें वे आने वाले तुफान की दहषत में हैं । चुनाव लड़ना कोई हंसी खेल थोड़ी न होता है बेचारों की कमर तक टेढ़ी हो जाती है पैर पड़ते-पड़ते और हाथ थक़ जाते हैं हाथ जोड़े-जोड़े, ओंठ मस्कुराने की स्टाइल का आकार ग्रहण कर लेते हैं । सभी को मनाना पड़ता है, सभी जानते हैं कि यही मौका है तो रूठ लो, वे रूठते भी इस स्टायल में हैं कि कोई मना ले तो हम मान जायें, भैयाजी उसके कांधे पर हाथ रख दें तो वे वैतरणी पार हो जाए । भैया जी पहले मनाते हैं और फिर न मानो तो उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं यह सोचकर कि ‘‘ेतरा क्या होगा कालिया’’ । कालिया भी अब जानने लगा है कि मान जाओ नहीं तो जो हाल फिल्म शोले में कालिया का हुआ है कहीं वैसा ही…….। खैर चुनाव चल रहे हैं । पर वोटर घर से नहीं निकल रहे हैं । वोटिंग परसेन्टेज कम हुआ है । लोगों में उत्साह दिख ही नहीं रहा है ‘‘भैया जब आप खुद ही चार सौ पार जा रहे हैं तो हमारी क्या जरूरत है’’, आप अकेले ही निकल लो । भैयाजी गुमषुम हो गए कम वोटिंग कहीं उनके रास्ते में अवरोध पैदा न कर दे । प्रयास किए गए तो दूसरे चरण में वोटिंग बढ़ गई पर बहुत ज्यादा नहीं । वैसे तो सच यही है कि मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग तो करना ही चाहिए । अपनी उंगली में लगी नीली स्याही आपका उत्साह बढ़ाती है, रेस्ट तो कभी भी किया जा सकता है पर मतदान करने के लिए पांच साल इंतजार करना पड़ता है इन पांच सालों में बहुत कुछ हो चुका होता है, जो हुआ होता है उसमें आप कहां हैं इसे खोजने के लिए मत देना ही चाहिए । चुनाव चल रहे हैं लम्बी अवधि है पूरा मई माह ऐसे ही चुनाव चलते रहेगें । कभी यहां तो कभी वहां । पूरी गर्मी ऐसे ही निकल जायेगी । घर में लगा एसी अकेले ही चलता रहेगा और खुद की ठंडक को खुद ही महसूस करता रहेगा । चुनाव हैं तो भाषणों का दौर भी चल रहा है । सुनने वाला मजबूरी में बैठा दिखाई दे रहा है, उसे जब इषारा मिलता है तो वह ताली बजा देता है नहीं तो वह पसीना पौछता हुआ समय काट रहा है । मंच पर बैठे नेताजी कूलर की ठंडी हवा खा रहे हैं उनके अंदर की गर्मी भाषण में निकल रही है वे जोर-जोर से चिल्ला रहे हैं, वे आरोप लगा रहे हैं, उनके पास कहने को कुछ और है ही नहीं अब वे कहां-कहां क्या-क्या नया बोले उन्हें तो दिन में दसियों भाषण देने हैं । भाषणबाजी अत्याक्षरी का रूप ले चुकी है । एक नेताजी कुछ बोलते हैं तो दूसरे का उसका जबाव देना जरूरी हो जाता है । दूसरा जो जबाव देता है उसके अंतिम अक्षर से पहले वाला कहीं और दूसरे मंच से भाषण देता है । भाषण में बुरा-भला कहा ही जाता है । वैसे भी अब भला कहने की आदत तो रही नहीं है तो बुरा ही कहा जाता है, व्यंग्य बाण छोड़े जाते हैं । व्यंग्यों की खासियत ही होती है कि वे ‘‘घाव करें गंभीर’’ वाली स्थिति के होते हैं । ये व्यंग्य भरे शब्द पब्लिक को मालूम नही कितना समझ में आता है पर न्यूज चैनल वालों को मसाला मिल जाता है वे बार-बार उसी लाइन को दोहरते हैं जो खतरनाक टाइप की होती है और जिसका मतलब ‘‘तेरा क्या होगा कालिया’’ ही होता है । कालिया डर भले ही जाता हो पर निडर होने का दिखावा करता है । आपस में झुंझलाहट बढ़ती जा रही है और चुनाव भी निपटते जा रहे हैं । गर्मी की तपन और शब्दों की जलन चुनाव चल रहे हैं के दृष्य को रेखंकित करते हैं । भाषणों में न तो विगत की बात होती है और न ही भविष्य की बात होती है । जो गुजर गया उससे क्या लेना देना और जो आने वाला है उससे अभी से क्या लेना देना जब आयेगा तो दिखाई पड़ जायेगा । भाषण टेपरिकार्ड की भांति होते जा रहे हैं । अपनी योजनाओं को तो घोषणापत्र में छाप दिया जाता है फिर उस पर क्या चर्चा की जाए । कहो तो उन्हें ही न मालूम हो कि उनके घोषणापत्र में लिखा क्या है ? चुनाव के भाषण का सीधा मतलब है कि आप सामने वाले की बुराई करें ‘‘तेरी शर्ट, मेरी शर्ट से सफेद क्यों है’’ के भावों को भांव भंगिमा के साथ प्रस्तुत करें । एक नेता बहुत अच्छा अभिनेता भी होता है वह अभिनय करता है और बुराई करता है । जनता को न तो अभिनय से मतलब है और न ही बुराई से वह तो भाषण खत्म हो जाने की राह देखती रहती है । वह ताली बजाती है, वह बीच-बीच में जिन्दाबाद के नारे भी लगाती है । भाषण देने वाले का उत्साह बढ़ाती है कई बार यह उत्साह इतना बढ़ जाता है कि सामने वाले को सोचने पर मजबूर होना पड़ता है ‘‘ेतरा क्या होगा कालिया’’ । वैसे अभी कालिया को कोई फिक्र भी नहीं है अभी उसका मन चुनावों में रम चुका है । जब तक चुनाव चलेगें उनका कुछ नहीं होगा । चुनाव महिने भर नहीं डेढ़ महिने चलेगें । चार जून को परिणाम आयेगें फिर जो जीतेगा वह जष्न मनायेगा जो हारेगा वो कोप भवन में जायेगा । वह अपनी गुस्सा निकालेगा । पहले यह गुस्सा ईवीएम पर निकाल दी जाती थी पर अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं है उनका यह सहारा भी टूट गया अब देखना होगा कि नया क्या विकल्प निकलता है जो नया विकल्प होगा वह भी कुछ दिन चलेगा । वैसे विपक्ष को उम्मीद नहीं थी कि न्यायालय ईवीएम पर उनकी षिकायतों को ऐसे ही खारिज कर देगा । पर हो गया जो होना था । अब ‘‘तेरा क्या होगा कालिया’’ की स्थिति निर्मित हो चुकी है । चुनाव चल रहे हैं
पष्चिम बंगाल से लेकर गोवा तक, महाराष्ट से लेकर मध्यप्रदेष तक नेताजी व्यस्त हैं । वे पल भर में सैंकड़ों किलोमीटर की दूरी माप लेते हैं अभी यहां बोल रहे थे अब वहां बोल रहे हैं । इतनी देर में तो आम मतदाता मत देकर घर भी नहीं लौट पाता पर वे बहुत दूर पहुंच जाते हें । चुनाव चल रहे हैं समय किसी के पास नहीं है । यही वह पर्व है जिसमें अपने कीमती समय को जितना बेस्ट कर दोगे बाकी का समय उतना ही ‘बेस्ट’ हो जायेगा । रोडषो की परंपरा भी चालू हो चुकी है । रोड शो हो रहे हैं । लम्बे, कई किलोमीटर के रोड शो । अपना बांया हाथ गाड़ी के बाहर निकालो और उसे हिलाते रहो । कभी कभी गाड़ी के बाहर आकर अपने दर्षन करा दो । मतदाता के दर्षन आपको नहीं करना है आपके दर्षन मतदाता को करना है ताकि सनद रहे । रोड शो चल रहे हैं कम समय में ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचने की संक्षिप्त प्रक्रिया । रोड शो के अपने मजे हैं, जो यह शो कर रहे होते हैं उनक चेहरे पर भी असीम आनंद दिखाई देता है और जो रोड शो देख रहे होते हैं उनके चेहरे पर भी आनंद दिखाई देता है दोनों के आनंद से जो रस निकलता है वह ‘‘लंगड़ा आम ’8 से ज्यादा स्वादिष्ट होता है । लंगड़ा आम लंगड़ाकर नहीं चलता पर फिर भी वह लंगड़ा ही कहलाता है । मई की तेज तपन है और शादियों का सीजन भी है । अब कोई भी नेता किसी की भी शादी में जाना नहीं भूलता । वह क्षणिक के लिए जाता है और मुस्कुराते हुए दूल्हा-दुल्हन के साथ अपनी फोटो खिचंवाता है । दूल्हा-दुल्हन से ज्यादा परिवार के लो प्रसन्न हो जाते हैं ‘‘भैयाजी कुटिया में पधारे । चुनाव के साथ ही साथ यह भी किया जाना जरूरी है । वैसे तो अब आम लोग इस प्रक्रिया को भी बहुत ज्यादा भाव नहीं देते । आप आये आपका स्वागत है, आप गये आपका स्वागत है । जिन्हें चार सौ पार के आंकड़े को छूना है वे भी और जिन्हें चार सौ पार के आंकड़े को छूने से रोकना है वे भी भावषून्य होते जा रहे हैं । मतदाता अपने-अपने कामों में लगा हुआ है । उसे फुरसत ही नहीं है । इस कारण से ही वोटिंग प्रतिषत कम हो रहा है । कार्यकर्ता भी तपती दुपहरी में पसीना पौछ रहा है उसे भी फिक्र नहीं है । अमूमन लोकसभा चुनावों में इतनी कम वोटिंग होती नहीं है । अभी तो मई का पूरा माह कहीं न कहीं वोटिंग होती रहेगी । सात चरणों का चुनाव है अभी तो केवल दो ही चरण निपटे हैं बाकी पांच चरणों में वोटिंग प्रतिषत बढ़ जाये तो अच्छा है । मई में तो शादी-ब्याह भी नहीं हैं तो हो सकता है कि ऐसा हो । एक तेरा क्या होगा कालिया पष्चिम बंगाल के संदेषखाली में भी चल रहा है । वहां कालिया ने ईडी की टीम पर हमला कर दिया था तब से वे आज तक ‘‘क्या होगा’’ के घेरे में हैं । सीबीआई से लेकर एनएसजी तक संदेषखाली की गलियों को छान रही है और गुप्त तहखानों से हथियार बरामद कर रही है । यह छोटा सा गांव इतनी चर्चाओं में आ चुका है कि हमारे देष के हर कोने में इस क्षेत्र की पहचान हो चुकी है । अब वहां इतना सब कुछ हो रहा है तो यह तो तय है कि कालिया बच नहीं पायेगा ।