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कभी मौन भी : पूनम पाठक

कभी मौन भी हो सकता है बेअसर
भले स्वर अनोखा भाषा अलग
मौन रहकर भी देखा है कभी
क्योंकि इसकी प्रज्ञा प्रखर
आंखों की भी जुबां होती है
फिर भी मौनी पर होता प्रहार
कब तक मौन रह सकता है कोई
भला आधुनिक दुनिया में
पल-पल सहता रहे कष्ट
महसूस ना हो किसी को तनिक
आखिर कब तक ऐसा करे कोई
मौन रहने पर दिल टूटता है
शब्दों में होती है एक जंग
बेबस हो जाता है इंसा
शब्द फूट कर आ जाते बाहर
और बयां करते दर्द-ए-दिल
तो मौन पर क्यों छिड़ती बहस

पूनम पाठक “बदायूँ”
इस्लामनगर बदायूँ उत्तर प्रदेश

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