मौसम कहता,
पतझर है पर अभी नहीं
आ गया मधुमास,
परन्तु पीपल बृक्ष से
चिपके सूखे पत्ते,
हवा में हिलते डुलते
जैसे बाय-बॉय करते
कह रहे हों पतझर को
“जान बाँकी है अभी
मुझमें” जैसे
किसी बृद्ध की जान
अटकी हो अपने नये
वंशज को देखने के लिये।
नौखेज पत्ते लगे हैं दिखने
बृक्ष की शाखाओं पर
स्वागत करते बसन्त का
परन्तु चिपके पत्ते
प्रतीक्षा कर रहे
होलिका दहन का
बृक्ष से टूट कर वे
जिसमें धू धू कर जलेंगे,
और नौखेज पत्तों का
उत्सव मनेगा
खिल उठेंगे सिमर के फूल
और रंग बिखेरेंगे पलाश
और महुआ के फूल
तब छा जाएगा बेला
मधुमास का,स्वागत
होगा बसन्त का।
नन्हें, भागलपुर।