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कोहराम

कैसा मचा ये कोहराम

फिर से

दम तोड़ रही साँसे हो मजबूर

कहीं इलाज की कमी

कहीं लापरवाही हावी

मौत हो या ज़िन्दगी दोनों

बस लगी हैं कतार में

कितनी भयावह हो गये हालात

जहां तक नज़र जाए बस खौफ़, बेबसी, लाचारी

है ये कोहराम कैसा

जहां जितनी मजबूर ज़िन्दगी

उतनी ही मौत भी

जितना बुरा हाल हस्पतालों में

उतना ही श्मशान घाटों में

वहीं शाही स्नान घाटों में साधु संतों का और श्रद्धालु भी नहीं पीछे

न ही थम रहे

चुनाव ,रैलियां ,आयोजन, बाज़ारों की भीड़ , बयानबाजियां, आरोप, प्रतिरोप

अधर में लटक रहा भविष्य छात्रों का

पूरे साल की तैयारी, उम्मीदें, आशाएं हैं उलझी सी

है ये कोहराम कैसा

बस हर ओर कसक, तड़प, बदहाली, लाचारी,

चीख चित्कार कहीं खामोश तो कहीं लरस्ती….।।

…मीनाक्षी सुकुमारन

    नोएडा

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