कुम्हार बना मिट्टी से,मिट्टी के दीये बनाये।
अपने आप से अपने आप को बनाने के
हुनर से ‘ नीर ‘ का मन अचंबित हो जाये।।
जोड़ तोड़ करता जीवन को,फिर जीवन कैसे चलाये।
ईर्ष्या – द्वेष के धागों पर क्यों चतुराई के मोती चढ़ाये।।
जगमगाते दीयो ने कभी ना किसी से समझौता किया।
अपनी रौशनी से दूर-दूर तक खूब उजाला किया।।
अपने जीवन को तू कुम्हार के मन सा बना।
अपने कर्म से जग में सुंदर दीयो सा जगमगा।।
नीरज त्यागी