मैं क्या बोलूं दिल है व्याकुल,
बच्चों की देखकर विकल दशा।
ताला है लगा जुबां पर जैसे,
लगभग दो सौ बच्चों को खोया है।
मां की आंखों के बहते सागर में
मेरे शब्द कहीं बह जाते हैं।
खाई गहरी निर्धन व धनिक मध्य,
मन जार जार कर रोता है ।
कुछ के पानी तक आते विदेश से,
कुछ दवा बिना दम तोड़ रहे।
कुछ के कुत्ते सौभाग्यवान,
सोते एसी में लेकर चैन ।
बीमार हाल कुछ तड़प रहे ,
लेटे फर्शो पर पंखों से भी विहीन।
कुछ का होता इलाज वीआईपी
कुछ पे डाक्टर की फीस नहीं।
अस्पताल बने महज दिखावे को,
डाक्टर साहब के पास भी वक्त नहीं।
मैं क्या बोलूं मन की बातें अब,
हो गई आज हूं शब्द विहीन।
डॉ सरला सिंह
दिल्ली