डॉक्टर सुधीर सिंह
आजाद भारत में आर्थिक आजादी नहीं,
किंतु आजादी का ढिंढोरा लोग पीटते हैं।
स्वतंत्रता दिवस धिक्कार कर कहता है,
भारत में गुलाम सा गरीब क्यों रहते हैं?
भ्रष्टाचार ने छीना है वंचितों की आजादी,
गरीब कोऔर ज्यादा गरीब बना दिया है।
भ्रष्टाचारियों के रूतबा का कहना क्या?
गोरखधंधेवाजों का सम्मान बढ़ गया है।
कालाधन कमाने की होड़ सी मच गई है,
सब मैराथन दौड़ में भाग लेना चाहता है।
जहां से भी हो और जिस विधि से भी हो,
यथाशीघ्र आदमी कुबेर बनना चाहता है।
आम इंसान देख रहा है खुली नजरों से,
समाज में कालेधन का होता नंगा नाच।
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सब उसमें शामिल है,
कहावत सटीक है , सांच को क्या आंच?
शोषित होना स्वीकार लेता है इंसान यहां,
अपने पुरुषार्थ को सहज ही गिरवी रख।