दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजें आ चुके हैं और जैसा कि अनुमान था अरविंद केजरीवाल दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे। इस चुनाव की बढ़ी बात यह रही कि तमाम भटकावों के प्रयास के बीच दिल्ली की जनता ने केजरीवाल व उनके कार्यों, योजनाओं पर अपना भरोसा कायम रखा और देश के तमाम राजनैतिक दलों को संदेश दिया कि सियासी पैंतरेबाजी छोड़कर जमीन पर आएं। इसे मतदाताओं व मुद्दों की जीत के तौर पर भी देखा जा सकता है।
चुनाव के दौरान केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की, बल्कि उनके आर्थिक मॉडल की आलोचना की तथा देश में बढ़ती महंगाई बेरोज़गारी को मुद्दा बनाया और चुनाव को भारत-पाकिस्तान की जगह स्थानीय मुद्दों पर बनाएं रखा। इसके साथ ही जनता के बीच में अपने विकास कार्यों का प्रचार-प्रसार किया। हालाँकि यह बात अलग है कि आम आदमी पार्टी अपने पिछले कार्यकाल में किए वादों का 25% ही कर पाई लेकिन फिर भी जनता को अपनी ओर आकर्षित कर पाने सफल हुई और अंत में केजरीवाल की फ्री स्कीम जैसे बिजली और पानी, स्वास्थ्य इत्यादि इस चुनाव में हिट साबित हुए।
बीजेपी की हार का एक कारण जेएनयू से शुरू हुआ एन्टी CAB और NRC आंदोलन भी रहा तथा बीजपी के नेताओं की तरफ से शाहीन बाग को एक साम्प्रदयिक मुद्दा बनाया जाना और ध्रुवीकरण की राजनीति करना जनता को रास नहीं आया और इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिला। भाजपा के लिए यह चुनाव एक सबक रहेगा कि एक ही पुड़िया हर ईलाज में नही चलती।
नतीजों से यह तो स्पष्ट हैं कि विकास, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों को दरकिनार कर आप चुनावी वैतरणी पार नही कर सकते। यह ऐसा रंगमंच है जहाँ स्वयं को बेहतर साबित करने के लिए आपको हर दिन कुछ अलग, अलहदा करना होगा। यह बात सभी दलों को समझनी चाहिए। देश की सबसे पुरानी पार्टी काँग्रेस की दुर्दशा हम देख ही सकते हैं। आज काँग्रेस को आवश्यकता है कि संगठन पर ध्यान दे और आत्ममंथन कर एक क्षमतावान नेतृत्व खड़ा करे।
बहरहाल, भाजपा की हार पर कई बुध्दिजीवियों व राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह एक नई उम्मीद दिल्ली ने देश को दी है कि जो विकास करेगा, वही राज करेगा। जनता की उम्मीदों की मजार पर कुर्सी टिकाकर आराम से बैठने वाले अब इस देश को स्वीकार नही। यह लोकतंत्र के लिए एक सुखद संकेत है। लेकिन वहीं दूसरी ओर चुनाव जीतने के लिए सरकारी खजाने को दोनों हाथों से लुटाना, जनता को मुफ़्त का लालच देना स्वस्थ लोकतंत्र पर प्रहार है।
जिस तरह से पिछले कुछ समय से चुनाव जीतने के लिए मुफ़्त बाँटने की प्रवृत्ति राजनेताओं में जागी हैं उससे एक प्रश्न यह भी उठता हैं कि क्या आने वाले चुनाव मुफ़्खोरी के वादों पर लड़े जाएंगे? भले ही उस प्रदेश की माली हालात हो?
- पुरु शर्मा