सूरज अपने एक दोस्त की शादी में कानपुर जा रहा था। सूरज का बचपन वहीं गुजरा था अतः वहाँ के इलाके से बहुत कुछ परिचित भी था । उसके साथ इलाहाबाद से ही एक और मित्र भी था ।
“कानपुर आ गया।” यह सुनकर दोनों दोस्त चौंक पड़े। वे आपस की बातों में इतना मशगूल हो गये थे की बस कब कानपुर पहुँच गयी कुछ पता ही नहीं चला। सूरज ने समय देखा तो रात के नौ बज रहे थे ।अपना सामान लेकर दोनों नीचे उतर गये । वहीं स्टेशन पर ही चाय पी और फिर अपने मंजिल तक जाने के लिए कोई भी साधन आटो रिक्शा आदि देखने लगे।
“भैया रामनगर चलोगे?”
“रामनगर ? अरे नहीं भैया, मुझे वहाँ नहीं जाना है।”
दो तीन आटोरिक्शा वालों ने यही कहकर मना कर दिया तो वे दोनों ही परेशान हो गए।
सूरज ने एक आटोरिक्शा वाले से पूछ ही लिया , “भैया आप रामनगर क्यों नहीं जाओगे?
“अरे बाबूसाहब वहाँ का रास्ता ठीक नहीं है रात दस साढ़े दस बज जायेंगे वहाँ से लौटने में मैं तो वहाँ नहीं जाऊँगा। वह रास्ता बहुत खतरनाक है।”
“क्या हुआ रास्ते को?”
“भाई साहब वह रास्ता कब्रिस्तान के बगल से होकर जाता है और रात में दस बजे के बाद वहाँ से कोई भी अकेले नहीं जाता है। बहुत सूनसान और खतरनाक रास्ता है।”
आखिर एक आटो वाला ज्यादा पैसे लेकर वहाँ जाने के लिए किसी तरह से तैयार हो गया। अब दोनों के जान में जान पड़ी। रास्ते में सूरज की निगाहें देखना चाह रही थी कि यह शहर अब कैसा लगता है ? बीस मिनट के सफर के बाद सन्नाटा चालू हो गया। वहाँ बहुत ही कम गाड़ियाँ दिख रही थीं। जब कोई गाड़ी दिख जाती तो मानों जान में जान आ जाती थी। तभी उसकी निगाह कब्रिस्तान में जाते हुए कुछ लोगों पर पड़ी पहले तो वह डर गया फिर ध्यान से उनकी ओर देखने लगा ।वे चार पाँच नजर आ रहे थे फिर वे झाड़ियों में गायब हो गये। सूरज ने घर पहुँचकर सारी बात
हरीश को बताई।
दोस्त की शादी में शामिल होने के बाद दोनों ने दो चार दिन वहीं रहने का प्लान बनाया।वे अब
कब्रिस्तान के उस रहस्य को ढूँढ़ना चाहते थे जिसके कारण लोग उधर से गुजरने में भी खौफ़ खाते थे। दूसरे दिन वे दोनों एक दो और भी वहाँ के लोगों को लेकर उसी कब्रिस्तान में गये। थोड़ी देर घूमने के बाद उनको एक पेड़ के नीचे कुछ
शराब की बोतलें पड़ी हुई मिलीं।अब उन लोगों का शक यकीन में बदलने लगा। जरूर कोई न कोई गिरोह ये हरकत कर रहा है। लोगों में डर की भावना भरकर उन लोगों ने अपना रास्ता साफ कर लिया था ।
उन लोगों ने उसी दिन ये सारी जानकारी वहाँ की पुलिस को दी। पुलिस ने भी तुरन्त योगदान प्रदान किया । उन लोगों ने बहुत ही सूझबूझ से काम किया और गोपनीय तरीके से मामले का पता किया तो एक बहुत बड़े तस्कर गिरोह का पर्दाफाश हुआ। वह गिरोह उसी कब्रिस्तान से अपना काम कर रही थी और देर रात आने जाने वालों की यदि उन पर नजर पड़ जाती थी तो वे उन्हें जान से मार देते थे। इस कारण भयवश कोई भी देर रात उधर से आने जाने में भी कतराता था। इसी कारण वहाँ पर वह कब्रिस्तान बदनाम हो गया था। वहाँ के जो लोग उधर से गुजरने में भी भय खाते थे उनको क्या पता था की मरे हुए लोग नहीं अपितु जीवित नर पिशाच ही इंसानियत के दुश्मन बने बैठे थे।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली