जुगनू इन रातों के : अनिल भारद्वाज एडवोकेट
शीतल नहीं चांदनी रातें, उमस भरा सारा दिन, जाने कहां छिपी वर्षा ऋतु,कहां खो गया सावन। फूलों के मौसम में जिसने ढेरों स्वप्न संजोए, बिना आंसुओं के वो क्यारी चुपके चुपके रोए। सूख रहे हैं पुष्प लताऐं, प्यासी है अमराई, किसी पेड़ की छाया में,जाकर लेटी पुरवाई, जाने कहां जा बसे वे दिन,रिमझिम बरसातों के,…