सविता चडढा
सुबह के 5 और 6 बजे के बीच का समय था । इस समय तक बहुत कम लोग ही उठ पाते हैं । सुगंधा हर रोज देखती है मंदिर जाने वाले कुछ लोग ही इस समय उसके घर के नीचे से निकलते हैं । उस दिन गली में शोर सुनकर सुगंधा ने दरवाजा खोला , उसने देखा एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए भाग रहा था और जोर-जोर से चिल्ला रहा था रुक साले रुक, तेरी तो …..सुगंधा ने देखा एक 12- 13 वर्ष का लड़का उस व्यक्ति के आगे आगे भाग रहा है।वृद्धावस्था होने के बावजूद सुगंधा अपनी गैलरी मैं आई और उसने आवाज लगाई “क्या हुआ है, सुबह-सुबह क्यों शोर मचा रहे हो ।”
हाथ में डंडा लिए वह व्यक्ति रुका नहीं,ना ही उस व्यक्ति ने सुगंधा की आवाज पर कोई प्रतिक्रिया दी और उस लड़के के पीछे भागता रहा। सुगंधा अंदर आ गई । अभी कुछ ही पल बीते थे की सुगंध को फिर गली में आवाज सुनाई दी । वह फिर गैलरी में आ गई, उसने देखा डंडा हाथ में लिए वह व्यक्ति अब उसे लड़के को पकड़ कर डंडे से पीट रहा था । लड़के के रोने की आवाज सुनकर अब गली में काफी लोग इकट्ठे हो गए थे । सुगंधा भी झटपट सीढ़ियां उतरकर गली में आ गई । उसने उसे व्यक्ति को पूछा “क्यों पीट रहे हो तुम इसको।”
“अरे माताजी आपको पता नहीं है यह लड़का शिवलिंग के ऊपर रखे आम को चुरा कर भागा है ” उसे व्यक्ति ने कहा और दो-चार डंडे उसके टांगों पर और जमा दिए ।
“अरे… तो क्या एक आम के लिए तुम इस लड़के को मार ही डालोगे ।” सुगंधा ने लड़के का हाथ पकड़ कर अपनी और खींचना चाहा ।
तब तक गली के बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गए थे और सुगंधा के पास आकर लड़के को बचाने की कवायत में लग गए थे । किसी ने कहा “यह व्यक्ति तो मंदिर के पुजारी का बेटा है।”
बहुत मुश्किल से पीटने वाले लड़के को बचाया गया और अब वह पीटने वाला व्यक्ति उसे उसे पकड़ कर मंदिर की ओर ले जा रहा था , सब लोग उसके पीछे-पीछे मंदिर की ओर ले चले । सुगंधा बहुत कशमकश में थी कि अब उसे बच्चे का क्या होगा ।इस बीच सुगंधा को अवसर मिल गया उसने उसे लड़के से पूछा “बेटा तुमने आम क्यों उठाया।”
“मुझे बहुत भूख लगी थी…और भगवान के ऊपर तीन चार बड़े-बड़े आम पड़े हुए थे । मैंने तो एक ही आम उठाया था।मैंन वो आम खाया भी नहीं, वह आम भी पंडित जी ने मेरे हाथ से छीन लिया था। बस जैसे ही इन्हें पता चला कि मैंने आम उठाया है ये डंडा लेकर मेरे पीछे भाग लिए और मैं मंदिर से बाहर भाग लिया।”
मंदिर के सामने पहुंचते ही लड़के को न जाने कैसे अवसर मिला वह पुजारी के बेटे की पकड़ से छूटते ही तेजी से सड़क की और भाग गया और सब की नजरों से ओझल हो गया। इस बीच सभी लोग मंदिर के अंदर पहुंच गए और पुजारी के बेटे की शिकायत करने लगे पुजारी अपने बेटे की पक्ष में ही बोल रहा था ” यह बच्चे की सरासर गलती है, उसे मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाए गए फलों को नहीं उठाना चाहिए था, यह पाप है ,उसे समझ होनी चाहिए ।”
“…पर पुजारी जी, भूख के आगे कोई धर्म कोई ,नसीहत मायने नहीं रखती, अगर उस बच्चे ने एक फल उठा भी लिया तो उसके लिए उसे मारना…. यह भी तो पाप है ।”
“पाप और पुण्य की परिभाषा आप लोग तो मुझे समझाएं , नहीं मैं मंदिर का पुजारी हूं,मैं पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म की परिभाषा खूब समझता हूं । पुजारी अपनी प्रतिष्ठा बचाने का पूरा प्रयास कर रहा था ।
सब लोग पुजारी के बेटे का विरोध कर रहे थे और उस बच्चों को पीटने के लिए इसकी शिकायत पुलिस को करना चाहते थे। पुलिस की बात सुनकर पंडित ने अपने बेटे को डांटा और कहा कि मुझे बताना चाहिए था । तुम्हें उसे छोटे बच्चे को, एक फल के लिए पीटने का कोई अधिकार नहीं था।”
उस दिन तो सब लोग अपने घर आ गए लेकिन कुछ दिनों के बाद वह पंडित और उसका बेटा उसे मंदिर से विदा कर दिए गए थे। उसे मंदिर के पुजारी और बेटे की विदाई के क्या कारण रहे यह किसी को पता नहीं । धर्म के नाम पर अब और इस देश में आपाधापी और मारामारी हम नहीं करने देंगे । जनता को जागरूक होना ही होगा ।
उस दिन के बाद यह निर्धारित कर दिया गया की मंदिर में जितने भी फल चढ़ाए जाएंगे, उन्हें धोकर एक बाल्टी में या पारात में रखकर, शाम को सभी गरीब बच्चों में बांट दिया जाएगा । यह भी तो सरासर अन्याय है कि देश के कई बच्चों को एक फल भी खाने को ना मिले और भगवान के नाम पर कितने ही फल खराब कर दिए जाएं और खराब होने के पश्चात उन्हें कूड़े में फेंक दिया जाए ।
कई दिन तक सुगंधा के सामने उसे गरीब बच्चे का चेहरा घूमता रहा जिसे एक आम खाने के लिए बेदर्दी से पीटा गया था। सुगंधा ने उसी दिन अपने गली के कुछ लोगों को इकट्ठा किया और मंदिर के कामकाज के निगरानी के लिए एक समिति बनवा दी । गली में सब लोगों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि प्रतिदिन मंदिर में नियत समय पर, कम से कम एक समय के लिए , गरीब बच्चों के लिए प्रसाद के नाम पर खाने-पीने की व्यवस्था की जाए ।
सुगंधा के मन का चैन अब बिल्कुल उड़ चुका है जबसे उसने यह खबर अखबार में पड़ी है कि एक बच्चे को एक पांडाल पूजा में एक कॆला उठाकर खाने पर कुछ युवकों ने खंबे से बांधकर बेदर्दी से इतना मारा कि उसकी मृत्यु हो गई । चार बहनों का इकलौता भाई धर्म के नाम पर बलि चढ़ गया । पुलिस अपराधियों को पकड़ने के प्रयास में जुटी है और अपराधी लापता और फरार हैं । यह कैसा धर्म है,यह कैसी पूजा है ? सुगंधा आज तक समझ नहीं पाई । धर्म के नाम पर होने वाले इस तरह के अनेक कुचक्रों से बचने के लिए, कानून बनाने के लिए सुगंधा प्रयास कर रही है और उसने सरकार को लिख दिया है कि ऐसे प्रयास करने वाले लोगों को सख्ती से निपटा ही नहीं जाए बल्कि कठोर से कठोर दंड दिया जाए ।