कभी तो देखे अपनी माँ को, जो बुर्खा मुख पर ओढ़े थी ,
कभी बोलती बिना जुबां के, माँ कब तू मुख खोलेगी !
क्या मेरी जवानी और बुढ़ापा तेरी तरह ही गुजरेगा ,
जो तेरे था साथ हुआ, क्या वो सब मुझपर बीतेगा !
कैसे गर्मी धूप में भी तू, सर ढक कर के रहती है ,
चाहें मुख से कुछ ना बोले, दिल से तो कुछ कहती है !
मैं बेटी हूँ मुझे पता है, क्या क्या तू सह जाती है ,
इतनी गर्मी में भी जाने चुप कैसे रह जाती है !
मुझे घुटन हो रही है माँ, सोच सोच के आगे की ,
कब तक अपनी दशा रहेगी, नदी भी होकर नाले सी !
मुझे पता है बहुत सोचती हो, तुम भी इस बारे में ,
मगर सोचने से होता क्या है, इस गलत ज़माने में !
पापा से तुम पूँछो तो, उनकी कुरान क्या कहती है ,
क्या उसमे भी नारी हमेशा, घुट घुट कर ही रहती है ?
खुदा ने तो धरती पर हमको परी बना कर भेजा है ,
तुम्ही बताओ भाग्य में अपने, फिर क्यों घना अंधेरा है
तुम्ही बताओ भाग्य में अपने, फिर क्यों घना अंधेरा है …….
-अरुण शर्मा –