हमने लगता है कि डीपफेक का जन्म 21 वीं सदी में हुआ है, इंटरनेट के आने के बाद, जबकि इसकी जड़ें बड़ी गहरी हैं, जिसका जिक्र मैं बाद में करूँगा। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी ने जब अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उम्मीदवारों की नसीहत दी कि डीपफेक से बच कर रहें।
आज के सूचना क्रांति के दौर में हम सूचनाओं से घिरे हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मनुष्य सूचनाओं के मकड़जाल में फंसा हुआ है, जिससे बच पाना आज मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। आज जब तकनीक की सहायता से किसी की बात को एडिट करके (काट-छांट कर) आधा-अधूरा प्रचारित-प्रसारित कर दिया जाता है, तो यह तय करना जनसाधारण के लिए बहुत ही कठिन है कि वह उस पर विश्वास क्यों ना करे? क्योंकि वह ऑडियो-विजुअल फॉर्मेट में सूचना ग्रहण कर रहा है। ऐसे में किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत ही मुश्किल है कि वह सूचनाओं पर विश्वास ना करें। उसे विश्वास करना ही पड़ता है क्योंकि वह सूचना को अपनी दो प्रमुख इंद्रियों से ग्रहण कर रहा है, आंखों से और कानों से। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जब मनुष्य की दो प्रमुख इंद्रियां से किसी चीज को ग्रहण करती हैं तो उसके विश्वास न करने का सवाल ही नहीं उठता है, जब तक कि वह बहुत ही सधा हुआ व्यक्तित्व ना हो।
आज 21वीं सदी में जब सूचनाओं हमारे सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं तो हमें यह सोचना पड़ेगा कि कौन सी सूचना ठीक है, सही है, विश्वसनीय है और कौन भ्रमित करने वाली है यानी भ्रम का जाल है, यानी फेक है। इसका एक उदाहरण जिसका जिक्र मैंने पहले किया था उसे उसे हम देख सकते हैं कि डीपफेक आदिकाल से चला आ रहा है, जिसके अंश महाभारत में दिखाई पड़ते हैं। महाभारत के दौरान जब गुरु द्रोणाचार्य को मारना बहुत कठिन हो गया तो दी फेक न्यूज का सहारा लिया गया। श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बहुत समझाया कि तुम घोषणा कर दो कि अश्वत्थामा मारा गया। लेकिन युधिष्ठिर इस तरह की भ्रमित सूचना देने एवं झूठ बोलने के पक्ष में नहीं थे। बाद में यह सूचना प्रचारित करवा दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया। श्री कृष्ण एवं पांडवों की सेना उन्हें तैयार किया कि तुम यह बोलने की अश्वत्थामा हाथी मर गया जब यह सूचना फैलाई गई कि अश्वत्थामा मारा गया तो इसकी पुष्टि करने के लिए द्रोणाचार्य ने उसे दौर के सबसे प्रामाणिक व्यक्ति जोकि युधिष्ठिर थे, उन से यह जानना चाहा। उन्होंने युधिष्ठिर से जब पूछा कि क्या अश्वत्थामा मारा गया? तो धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि ‘अश्वत्थामा हतो नरो वा कुञ्जरो वा’। जब युधिष्ठिर अपना वाक्य पूरा कर ही रहे थे तो ‘अश्वत्थामा हतो’ के तुरंत बाद ही श्री कृष्ण ने उच्च ध्वनि में शंख बजा दिया। इस तरह बाद के शब्द द्रोणाचार्य सुन नहीं पाए और उन्होंने हथियार डाल दिए और युद्ध के मैदान में बैठ गए। जिसका फायदा उठाकर दृष्टद्युम्न ने उनकी हत्या कर दी। इस प्रकार एक महान योद्धा मारा गया, जिसका कारण सीधे-सीधे भ्रमित करने वाली सूचना थी यानी डीपफेक था।
हम सोच सकते हैं कि उस दौर में जब धर्म के खिलाफ युद्ध लड़ा जा रहा था और जिसे धर्म युद्ध का ही नाम दिया गया था। उसमें इतनी बड़ी गलत सूचना प्रचारित कर दी गई और उसका लाभ लिया गया। तो 21वीं में जब हम सूचनाओं के मकर जाल में है तो कैसे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हमें केवल और केवल सटीक सूचनाओं प्राप्त हो रहीं हैं। सूचनाओं को तोड़ मरोड़ कर जनता के समक्ष परोसा जा रहा है। पिछले एक दशक में आलू से सोना बनाने सरीखे फेक न्यूज़ खूब देखे और पढ़े गए, जिसे आज भी एक ठीक-ठाक पढ़ा-लिखा बड़ा तबका सही ही मानत है। अभी हालही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयान के साथ भी इसी तरह किया गया, जिसे बाद में पीआईबी ने पूर्ण प्रसारित किया। अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की आपाधापी में जनता के पास इतना समय नहीं है कि वह उन पर विचार करें मंथन करें या उनकी पुष्टि करे। उसके पास ना ही इस तरह का कोई तंत्र है। जनता के पास भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं है और इसी का लाभ उठाकर लगभग सभी राजनीतिक दल लोगों की भावनाओं से खेल रहे हैं।
ऐसे में जरूरी है कि एक जागरूक नागरिक और जिम्मेदार मतदाता के तौर पर हमें चाहिए कि इन गलत सूचनाओं से हम बचें। मोबाइल इंटरनेट का प्रयोग कम से कम प्रयोग करें। क्योंकि इस पर प्रचारित और प्रसारित की जाने वाली सूचनाएं सटीक और सच्ची होगी यह कहना बहुत ही मुश्किल है। पिछले एक दशक में हमने देखा है कि अनेक-अनेक तरह के छोटे-छोटे क्लिप मीम प्रचारित करके अनेक व्यक्तियों की छवि को धूमिल किया गया है। जिस खतरे से प्रधानमंत्री ने हालही में आगाह भी किया है। इस तरह के प्रयास सतत रूप से जारी हैं। आज हम सोच सकते हैं कि यदि दस हजार लोगों को काम देने के तौर पर कहा जाए कि उन्हें केवल दिन में एक आदमी द्वारा केवल पांच सौ संदेश भेजने हैं और मेहनताने के तौर पर प्रत्येक संदेश का दो रुपये दिया जाएगा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह एक साथ पचास लाख संदेश भेजने का आंकड़ा होगा। यदि आपके आसपास एक साथ पचास लाख संदेश तैर रहे हैं तो आपके अविश्वास की गुंजाइश ना के बराबर होगी। पचास लाख फेक संदेश एक साथ भेजे जाए तो उस पर किसी के भी द्वारा विश्वास किया जाना संभव है। क्योंकि जब अपने चारों तरफ एक व्यक्ति पचास लाख एक ही तरह के या एक ही प्रवृत्ति के संदेश देखता है तो उसके पास विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि डीपफेक किस तरह से लोगों को अपने जाल में फंसाकर किसी भी व्यक्ति की छवि को धूमिल कर सकता है। इसी तरह वह किसी को भी शिखर पर भी बैठ सकता है।
2024 का चुनावी रण नजदीक है। ऐसे में मतदाताओं को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि वह भ्रमित करने वाली सूचनाओं से स्वयं को बचा सके। उसके मकड़जाल में न फंसे। यदि वे इस मकड़जाल में फंस गए तो उसका खामियाजा उन्हें अगले पांच साल तक भुगतना पड़ेगा। ऐसे में अनिवार्य है कि सटीक सूचनाओं पर विश्वास करें, विवेक का इस्तेमाल करें और अध्ययन की प्रवृत्ति को अपनाएं। आज जब हम रील लाइफ और शॉट्स के युग में है। तो इसी रील ने मनुष्य के धैर्य को और अटेंशन को बहुत ही कम कर दिया है। आज मनुष्य केवल दो सेकंड में यह निर्णय करता है कि उसे यह रील देखना है या नहीं। इससे हम समझ सकते हैं कि दो सेकंड का निर्णय, सही निर्णय होगा या गलत होगा। विवेक बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है जब द्रोणाचार्य जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति को गलत सूचना के प्रचार से भ्रमित किया जा सकता है, तो एक साधारण व्यक्ति सोच सकता है कि उसका क्या हश्र किया जा सकता है। डीपफेक एक बहुत बड़ी बीमारी है जिसका कोई निदान नहीं है। इससे स्वयं ही बचना है और इसका केवल एक ही उपाय है जो मुझे नजर आता है, जैसे कि कहा जाता है की औषधि से परहेज अच्छा यानी बीमार होने से बचने के लिए और दवा ना खाने से बेहतर है कि हम परहेज करें। यानी हमें चाहिए कि हम गलत सूचनाओं को देखने से परहेज करें ताकि हम मानसिक रूप से बीमार होने से बच सकें और हमारा विवेक समृद्ध हो सके और हम सटीक निर्णय लेने में सक्षम हो सके और किसी भी प्रकार के डीपफेक से बच सकें।
– डॉ. मनोज कुमार
लेखक- सार्वजनिक उपक्रम में राजभाषा अधिकारी है।