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है याद मुझे माँ (कविता-10)
याद नहीं कब मैंने माँ तुझ में ली अंगड़ाई थी जीवन जीने हेतु तन से तेरे मीठी अमृत पाई थी तूने ही मेरे हाथों में सबसे पहले कलम थमाई थी है याद मुझे माँ ऊँगली थामे स्कूल छोड़ने आई थी सबसे प्रिय वो लाल साड़ी जो तूने स्वयं सजाई थी जिद कर मैंने तुझसे उसकी…
अनुरागी माँ (कविता-8)
कन्टकमय पथ विपदाओं में , उसने चलना सिखलाया है । निज बाँह- पालने झुला- झुला , अधरों से चूम सुलाया है ।। अज्ञान- तिमिर जब गहराए , तब दिव्य- ज्ञान लेकर आई । संसार- सरित ……… । संसार ……….. तुम हो उदारिणी कल्याणी , काली अम्बे सम शक्तिमयी । जगवीर प्रसविनी सृष्टि बिन्दु , विदुषी…
माँ (कविता-8)
माँ मेरी माँ है सबसे प्यारी इस जग में है सबसे न्यारी सुबह सवेरे जग जाती है सबको सुलाकर सो जाती है सबको यत्न से खूब संवारती स्वयं को सहज ही भूल जाती मेरी माँ… आज खुजतो हूँ तुम्हें तारों में, फूलों में, गलियारों में, एक बार सीने से लगा जाओ बाँहों में अपनी सुला…
माँ (कविता-7)
पूरे घर का काम समेट कर थकान से चूर सुस्ताने को लेटी माँ बेटी के आते ही फुर्ती से रसोई में बेसन,सूजी ढूँढ पकौड़ी-हलवा बनाने लगती है! सबके सामने चुप रहने वाली माँ बेटी के आते ही उसके सम्मुख अकेले में मुखर हो उठती है! कुछ दिनों मायके में रहने आई बेटी को जाते समय…
माँ (कविता-6)
वो कहते हैं हमने भगवान नहीं देखा मैं कहता हूँ मेने देखा हैं जब मुझे तकलीफ होती हैं तो मेरी माँ रोती हैं मैं दुनिया का सबसे हसीं लाडला हूँ मेरी शैतानियों का कोई ठिकाना नहीं वो माँ ही तो हैं जो हमारे हर किरदार से प्यार करती हैं किसी भी उम्र मे मुझे डांट लगा…
माँ!.. ..(कविता-5)
याद मुझे है माँ देखो ! अब भी कुछ-कुछ बचपन की वह यादें .. जब तुम रखती थी अंजुरी में भरकर अपने सरसों का वह तेल मेरे सूखे माथे पर और ठोकती रहती थी दोनों कोमल हाथों से तब-तक, जब-तक वह भिन न जाता था सिर के बालों में कहती थी सर की पीरा छू…
ममतामयी माँ (कविता-4)
डॉक्टर सुधीर सिंह माँ की नजरों में वयस्क संतान भी, सदा एक मासूम बच्चा ही रहता है. बूढ़ी जननी की गोद में माथा रख, बीते बचपन में में जब खो जाता है. ममतामयी माँ जब सर सहलाती है, लगता है वह एक अबोध बालक है. पता नहीं चलता है लंबी उम्र तब, आसपास जब ममता…
आशीर्वादों की बरसात है मां (कविता-3)
ओम के उपरांत सबसे पूजनीय शब्द है मां आशीर्वादों की बरसात है मां इस दिल की धड़कन है मां श्वांसो का आवागमन है मां प्रथ्वी पर चट्टान है मां देवी का स्वरूप है मां प्यार का दरिया है मां रिश्तों को जोड़े वो कड़ी है मां कर्तव्य का प्रायवाची है मां एक अलग ही राशि…
माँ (कविता-2)
मार्टिन उमेद नज्मी मैंने जमीं पे चलती फिरती ख़ुदा की अंजा देखी है , मैंने जन्नत नहीं देखी कभी मैंने अपनी माँ देखी है ॥ ———————- बेटी की शादी में गरीबी सह विधवा माँ खर्चे को हिचकिचाती रही , वो ज़बां पर ख़ामोशी के ताले डाल इक इक रस्म-ओ -रिवाज निभाती रही ! ———————- माँ…
माँ का कमाल (कविता-1)
(पूनम द्विवेदी) माँ ने हमकों जीवन देकर दिखा दिया संसार, माँ ने हमकों चलना सिखाकर घूमा दिया संसार। माँ ने हमकों बोलना सिखाकर ज्ञानी बना दिया, माँ ने हमकों संस्कारित करके सम्मानित बना दिया। माँ ने हमकों समाजिक करके व्यवहारिक बना दिया, माँ ने हमको प्यार देकर प्रेमी बना दिया। माँ ने हमकों भाव देकर…