क्या, तितली के पंख को तुमने, हाथ लगा कर देखा है ,
जिसपर वो मंडराती है, उस फल को खाते देखा है !
क्या देखी है “अरुण” कभी, तनहाई सूरज की बोलो ,
क्या तुमने रवि की किरणों को, पास से जाकर देखा है!
चंदा हँसता है खिलकर, और तारे मुसकाते तो हैं ,
मुझे बताओ ग्रहण में क्या, इनको मुसकाते देखा है !
धरती कितनी ममता रखकर, साध रही है दुनिया को,
उसकी तपिश को क्या तुमने, माथे पे लगा कर देखा है !
अपने गम में घूम रहे हो ,बैरागी से बने हुए ,
जिसे ना मिल पाया दाना, उस पेट मे जाकर देखा है !
निपट स्वयं में खो जाना, मानव का काम नही कविवर,
किसी के दुख के आँसू को, आंखों से बहा कर देखा है !
इतिहासों में वर्णन उनका, जो सबको साथ चले लेकर,
वरना हमने, सिकंदरों को, गुम हो जाते देखा है