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तितली के पंख : अरुण कुमार शर्मा

क्या, तितली के पंख को तुमने, हाथ लगा कर देखा है ,

जिसपर वो मंडराती है, उस फल को खाते देखा है !

क्या देखी है “अरुण” कभी, तनहाई सूरज की बोलो ,

क्या तुमने रवि की किरणों को, पास से जाकर देखा है!

चंदा हँसता है खिलकर, और तारे मुसकाते तो हैं ,

मुझे बताओ ग्रहण में क्या, इनको मुसकाते देखा है !

धरती कितनी ममता रखकर, साध रही है दुनिया को,

उसकी तपिश को क्या तुमने, माथे पे लगा कर देखा है !

अपने गम में घूम रहे हो ,बैरागी से बने हुए ,

जिसे ना मिल पाया दाना, उस पेट मे जाकर देखा है !

निपट स्वयं में खो जाना, मानव का काम नही कविवर,

किसी के दुख के आँसू को, आंखों से बहा कर देखा है !

इतिहासों में वर्णन उनका, जो सबको साथ चले लेकर,

वरना हमने, सिकंदरों को, गुम हो जाते देखा है

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