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परछाईं

घर में प्रवेश करते ही त्रिशा माँ से लिपट कर उत्साह से चहक उठी

‘माँ मेरा प्रमोशन हो गयाl’ मिठाई का एक टुकड़ा माँ के मुँह में डाल मिश्राजी के सीने से लग कर उनका मुँह मीठा करते हुए उसने कहा

‘पापा आपके आशीर्वाद से इंक्रीमेंट भी अच्छा मिला हैl’ पापा ने त्रिशा के सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कहा

‘बेटा ये सब तुम्हारे परिश्रम और लगन का ही फल हैl’ एकाएक मिश्राजी का मोबाइल बज उठाl उधर से बुआ जी का फ़ोन था जो त्रिशा के लिए  लड़के वालों को लेकर आ रही थींl उन्होंने हिदायतें देते हुए कहा ‘भैया हम लोग निकलने वाले हैं, आप इनसे त्रिशा की नौकरी की बात मत करना… पुराने ख़यालों के लोग हैं… कहीं मना न कर देंl’ सुनकर मिश्रा जी का उत्साह ठंडा पड़ गया, त्रिशा स्तब्ध रह गईl कुछ देर बाद माँ ने संयमित स्वर में कहा

‘लड़कियों के लिए अच्छा घर, अच्छा वर मिलना ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, नौकरी तो बाद में आती है और इतने समृद्ध परिवार में त्रिशा को नौकरी की आवश्यकता ही क्या है?’ त्रिशा को काटो तो खून नहींl उसकी आँखे भर आईंl कहाँ एक ओर प्रमोशन की खुशी और कहाँ नौकरी की कीमत पर रिश्ते की बातl

वास्तव में परिवार बहुत अच्छा थाl मिश्राजी भी आश्वस्त हो चुके थेl बस त्रिशा अपने कैरियर से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थीl डरते डरते मिश्राजी ने त्रिशा के प्रमोशन की बात निकाल दीl उम्मीद के विपरीत स्वराज की माँ की आँखों में चमक आ गईl उन्होंने उठ कर मिठाई का एक टुकड़ा अपने हाथ से त्रिशा के मुँह में डाल कर बधाई दी और गले लगा कर कहा ‘केमेस्ट्री में गोल्ड मेडलिस्ट होने पर भी पिताजी ने नौकरी की इजाज़त न देकर मेरी शादी कर दी थीl हमारे यहाँ लड़कियों के कैरियर को बहुत हल्के में लिया जाता है, उन्हें बस मर्दों की परछाई बना दिया जाता हैl मैं नहीं चाहूँगी कि मेरी बहू मेरी तरह सिर्फ़ परछाईं बन कर रह जाएl’ त्रिशा का मन भावी सास के प्रति श्रद्धा और खुशी से थिरक उठाl

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अजय कुमार पाण्डेय

सी 402, वॉलफोर्ट सफायर

रायपुर, छत्तीसगढ़

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